कलम से : आज इंद्रावती नदी का पर्याय नाम "बस्तर की प्राण दायनी नदी" के नाम पर हो गया है। एक मुद्दत हो गई, एक जमाना बीत गया... मैं व...
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कलम से : आज इंद्रावती नदी का पर्याय नाम "बस्तर की प्राण दायनी नदी" के नाम पर हो गया है।एक मुद्दत हो गई, एक जमाना बीत गया... मैं विगत कई वर्षों से इंद्रावती के जलभराव / जल कटाव / की समस्या के बारे में निरंतर सुनता व पेपरों में पढ़ता आ रहा हूं।
अभी 3 साल पहले हम लोगों ने इसके लिए विधिवत एक "इंद्रावती बचाओ अभियान" बनाकर उड़ीसा के तट से लेकर चित्रकूट तक इसकी पदयात्रा कर जन जागरण व जन आंदोलन की शुरुआत कर, शासन प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित भी किया था, आयोग का गठन भी हुआ, पर वह किन कागजों में कहां पर हुआ यह अज्ञात है। परिणाम शून्य रहा...???
बस्तर की एकमात्र प्राण दायिनी नदी में जल स्तर की होती कमी को देखकर "इंद्रावती बचाओ अभियान के मुहिम" में हमारे कई जागरूक चिंतनशील पत्रकार साथी भी जुड़े हुए हैं, इसलिए यदा-कदा किसी पेपर में इस समस्या का वर्णन फिर आ जाता है।
विगत सरकारों ने भी इसकी कोशिश उड़ीसा की सरकार से मिलकर कुछ छोटे प्रयास किए पर प्रयास व परिणाम इतने नगण्य थे कि जिसका कोई परिणाम नहीं निकला। जोरा नाला का कटाव इंद्रावती नदी का बहाव अपने में समाहित करते जा रहा है।
जोरा नाला के मिलने वाली जगह पर नदी यू टर्न ली है, वहां उस नदी के कटाव से रेत के 2 बड़े टीला बन गए है जो नदी के बहाव को जोरा नाला के बहाव के साथ दूसरी तरफ़ मोड़ रहा है।
इस समस्या को सुलझाने के लिए उड़ीसा सरकार कभी भी समर्पित भावना से व समस्या के स्थाई निराकरण व निदान के लिए अपनी इच्छा शक्ति से तैयार नहीं रही।
45 टीएम इंद्रावती नदी पर जो बांध बना हुआ है वहां से हर साल छोड़े जाने का इकरार हुआ था, जिसे कभी भी उड़ीसा सरकार बीएमसी के समझौते को पूरा करती नहीं दिखती है।
क्या शासन प्रशासन तब जागेगा जब इंद्रावती नदी पूरी तरीके से सूख जाएगी...? क्या इस समस्या का कोई राजनीतिक व विभागीय विकल्प नहीं है...? क्या यहां बस्तर जिले के सांसद/ विधायक/ मंत्रियों का ध्यान इस ओर बिल्कुल नहीं जा रहा है, क्या वे शक्ति विहीन होते जा रहे हैं, कि इस समस्या का कोई स्थाई निराकरण, निवारण किया जा सके।
समय-समय पर समाज अपनी सामाजिक जागरूकता के चलते अनेक माध्यमों से शासन प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित करता चले आ रहा है।
इंद्रावती नदी में मिलने वाली तीन सहायक नदियों के कारण नदी का कुछ जलस्तर वा चित्रकूट का अस्तित्व थोड़ा बचा रहता है। अपने आप में यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले सालों में कई बार चित्रकूट का वाटरफॉल पूरा सूख गया था...???
मुझे आश्चर्य होता है, यकीन नहीं आता की इस ओर किसी का ध्यान क्यों नहीं हैं...??? राजनीतिक/ प्रशासनिक इच्छा शक्ति दिख ही नहीं रही है। शासकीय अमले को इस ओर ध्यान देकर इसका निराकरण करना चाहिए क्या वे भी इस समस्या से अनजान है...??? तो फिर आखिर इसका संज्ञान कैसे, कौन और कब लेगा..??
आम जनता को... किए गए प्रयास या कागजी कार्यवाही से कोई सरोकार नहीं है, बस्तर की जनता को इंद्रावती नदी में पानी चाहिए जिससे सिंचाई व पेयजल की पूर्ति निरंतर सुनिश्चित हो सके बाकी बातें शासन-प्रशासन जाने।
यह कब होगा और कितनी जल्दी होगा यह सवाल बस्तर की जनता, शासन प्रशासन से पूछती है... जवाब चाहिए... जवाब दो...
लेख : अजयपाल सिंह (जगदलपुर) पर्यावरण प्रेमी
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