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सत्ता को बस कुर्सी की ही परवाह होती है, चीन मे फिर लौट रही "सांस्कृतिक क्रांति"

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कलम से : एक जमाने में चीन में वहाँ के तानाशाह "माओ" सत्ता पर काबिज थे। माओ के तानाशाही के कई किस्से आज भी दुनिया के इतिहास में प्...

कलम से : एक जमाने में चीन में वहाँ के तानाशाह "माओ" सत्ता पर काबिज थे। माओ के तानाशाही के कई किस्से आज भी दुनिया के इतिहास में प्रचलित हैं और समय समय पर हमें सुनने और पढ़नें को मिलते रहते हैं। उन्ही में से एक किस्सा था माओ द्वारा पूरे चीन में सांस्कृतिक क्रांति का बिगुल फूंकना और उसकी लपट में पूरे चीन में हत्याओं की शृंखला चलना। जैसा कि नाम से जाहीर होता है सांस्कृतिक क्रांति, अगर किसी भी धार्मिक स्थान पर इसका उपयोग किया जाए तो इससे हमारा दिमाग कहेगा कि किसी विशेष धर्म या संस्कृति को मानने के लिए और उसकी सत्ता पूरे राष्ट्र में स्थापित करनें के लिए विशेष क्रांति का नाम होगा, सांस्कृतिक क्रांति। मगर बता दें कि माओ कम्युनिस्ट पार्टी से आते थे, और वहाँ धर्म और संस्कृति की बात नहीं की जाती थी। वहाँ तो केवल मजदूर और गरीब जनता को इंसाफ दिलाना ही सरकार का एकमात्र ध्येय था। तो फिर क्या थी ये सांस्कृतिक क्रांति? और माओ का इसे लागू करनें का क्या उद्देश्य था?  दरअसल माओ ने चीन में सांस्कृतिक क्रांति का नियम लागू किया जिसमें जनता से अपील कि गई कि

 सभी पुरानें रीति रिवाज, पुरानी सोच, सामंतवाद को खत्म किया जाए और पूरे राष्ट्र में समाजवाद और बराबरी स्थापित हो। 
mao and xi jinping of china

चीनी राष्ट्रपति माओ और शी जिनपिंग 

दरअसल माओ सोवियत रूस में स्टालिन के हश्र से काफी भयभीत हो गया था। स्टालिन के मृत शरीर को रातों रात वहाँ की नई सरकार ने दूसरी जगह घृणा की वजह से स्थानांतरित कर दिया था। क्योंकि कुछ लोगों का मानना था की उस समय के सोवियत रूस की खराब हालात का एक मात्र जिम्मेदार व्यक्ति अगर कोई है तो वो केवल स्टालिन ही है।  वहीं चीन के स्टालिन माओ थे, स्टालिन के मौत के बाद यहाँ चीन में माओ की भी लोकप्रियता कम हुई थी। उसने जनता का दिल जितनें के लिए और सत्ता पर बनें रहनें के लिए एक दांव खेला। और उसी दांव का नाम था सांस्कृतिक क्रांति (Cultural Revolution)। लेकिन शुरुआत में इस विषय पर चीनी नागरिकों ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। वहाँ की जनता को ये बात पता थी कि राष्ट्रपति माओ का स्वास्थ्य दिन ब दिन बिगड़ता जा रहा है, उनकी उम्र भी बहुत ज्यादा हो चुकी है। इन्हीं सवालों को विराम देने के लिए माओ की एक तस्वीर अखबारों में चलाई गई जिसमें वे अपनें कई समर्थकों के साथ नदी में तैरते हुए नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर ने पूरे चीन की तस्वीर बदल दी, एक पूरा का पूरा हुजूम "अपने वृद्ध राष्ट्रपति जो युवाओ कि तरह तैराकी कर सकतें हैं" माओ के पीछे चल निकला। खास कर चीनी युवा इस आंदोलन में शामिल हुए। फिर शुरू हुआ नरसंहारों का सिलसिला। ऐसे धनी, जमींदार और व्यवसायी जो आम लोगों को खटकते थे उन्हें बीच सड़क में यातना देखर फांसी से लटका दिया गया। उनकी ज़मीनें, संपत्तियों और धन पर सरकार का कब्जा हो गया। यही थी उस दौर के चीन की  सांस्कृतिक क्रांति। माओ के शासन की और भी बहुत सी कहानिया हैं जिन्हें हम अगले अंक में प्रकाशित कारेंगें।   


खैर, उस समय के ताकतवर नेता माओ से भी ज्यादा ताकतवर हो चुके चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी चीनी नागरिकों में अपनें ही तरह की सांस्कृतिक क्रांति लानें की मुहिम शुरू कर दी है। वहाँ के लोग दो धड़े में बांटें जा चुके हैं एक जो सरकार के समर्थक हैं और दूसरे जो सरकार के विरोधी हैं। सरकार का विरोधी या आलोचक होना वहाँ अपराध की श्रेणी में आने वाला करतूत हो गया है। इसका ताजा उदाहरण है "जैक मा!"

jack Ma


जैक मा गायब :

विश्व इतिहास की अगर बात की जाए तो  हमें कई  सारे ऐसे उदाहरण मिल जाएंगें जहां एक सनकी तानाशाह नेता अपनी छवि बचाने की लड़ाई में आस पास के ऐसे लोगों का काम तमाम करना चाहता है, जो उनकी आलोचना करतें हैं, कर सकतें हैं या भविष्य में उनके लिए खतरा हो सकते हैं। चीन के सबसे बड़े चर्चित नामों में से एक "अली बाबा" के संस्थापक जैक मा के बारे में तो हम सभी ने कहीं न कहीं से सुन रखा है। कुछ समय पहले ही जैक ने अपनी सरकार (शी जिनपिंग) के कुछ नीतियों की आलोचना कर दी थी। तब से ही जैक सरकार की नजर में चुभनें लगे थे। हाल में ही जैक ने चीन में बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त किए जानें की मांग की, जिसके बाद से ही विश्व की इतनी बड़ी कंपनी अली बाबा के संस्थापक व्यवसाई जैक मा गायब हैं। आखिर उन्हें क्या हुआ होगा? उस एक आलोचना के बाद से उनका कोई पता ठिकाना ही नहीं है। क्या सरकार ने उन्हें गायब कर दिया है या उन्हें नाज़ियों के तरह किसी शिविर में डाल दिया गया है। जो भी हो इस घटना से पूरे विश्व में जिनपिंग सरकार की पोल खोल कर रख दी है। 

Uigar Muslim of China


चाहे उईगर मुसलमों का मुद्दा हो, चाहे प्रेस की आजादी छीनने का या आलोचकों को गायब करनें का मामला हो सभी घटना क्रम चीन को तानाशाह शासन की ओर ले जाने के संकेत देते हैं। 

कुछ जरूरी बातें 

1. चीन ने अपनें अति  महत्वाकांक्षी बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) प्रोजेक्ट के लिए बहुत से खतरनाक कदम उठायें हैं। 

2. अफगानिस्तान में तालिबान ने जिस प्रकार कब्जा किया उसमें पाकिस्तान और चीन ने तालिबान का समर्थन किया। 

3. चीन हमेशा आतंकी गुटों का समर्थन करता पाया जाता है। इसके उदाहरण बीते कुछ वर्षों में देखनें को मिलें हैं। 

4. हालांकि अभी तक साबित नहीं हुआ है लेकिन विश्व व्यापी कोरोना वायरस, जिसनें पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया, उसे भी चीन के द्वारा प्रयोगशाला में तैयार किए जा रहे खतरनाक वायरस हथियार के प्रयोग के असफल होने और गलती से वूहान में फैलने से विश्व को खतरनाक वायरस से सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर जहां पूरी दुनिया आर्थिक रूप से बुरी तरीके से पिछड़ रही थी। वहीं चीन की आर्थिक स्थिति कोरोना के पीक समय में अच्छी हो रही थी। कुछ विशेषज्ञ कोरोना को भी चीन की सोची समझी रणनीति मानते हैं। 

5. पिछले दो सालों में विश्व के सम्पन्न देशों की आर्थिक रूप से जहां कमर टूट गई है वहीं चीन की जीडीपी काफी सुधरी  है। कोरोना वायरस फैलाने से पहले ही विश्व बाजार में बेचनें के लिए जरूरी स्वास्थ्य ईक्यूपमेंट का निर्माण उसनें कर लिया था। और उसे बेच कर काफी मुनाफा भी कमाया। 

6. चीन ने अपनें देश के सभी निजी स्कूलों का अधिग्रहण कर लिया है। स्कूल के मालिकों को कोई हर्जाना दिए बिना ही सभी स्कूलों को सरकार ने अपने अधीन कर लिया है। इस वर्ष से ही इन सभी तब्दील किए हुए सरकारी स्कूलों में बच्चों के सिलबस में शी जिनपिंग की किताब भी जोड़ी गई है। जिसमें जिनपिंग के महान व्यक्तित्व, आम नागरिकों से उनकी मुलाकात और उनके संदेशों को शामिल किया गया है। प्रत्येक बच्चे को यह पढ़ना अनिवार्य किया गया है। 

7. शी जिनपिंग ने वहाँ के कानून में संशोधन करके राष्ट्रपति पद पर खुद को बनाए रखनें के लिए कुछ बदलाव किए है। जिसके अंतर्गत जिनपिंग जब तक चाहें चीन के राष्ट्रपति के रूप में रह सकतें हैं। और अपनी मर्जी से वे अपनी कुर्सी छोड़ सकतें हैं। 

8. चाहें मनोरंजन उद्योग हो, समाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यवसाय सब पर चीनी सरकार ने अपनें बनाए नियम और शर्तें लागू कर दी हैं। टीवी पर दिखाए जानें वाले रेयलिटी शोज के लिए बहुत से नियम बनाए गए है। जिसमें उन शोज के प्रस्तुतकर्ताओं को निर्देश दिया गया है कि ऐसे पुरुष सेलिब्रिटी या लोगों को शो में न दिखाया जाए जो ज्यादा मेकअप करतें हों। और जो पुरुष महिलाओं जैसा बर्ताओ करतें हो उन्हें भी शो से बाहर निकाल दिया जाए। 

9. वहाँ की मीडिया में शी जिनपिंग या सरकार कि आलोचना करनें का अधिकार नहीं है। 

10. चीन की सभी छोटी बड़ी कंपनी पर हमेशा खतरे की तलवार लटकी रहती है। सरकार जब चाहे उसपर अपना कब्जा जमा सकती है। 

इसके अलावा भी बहुत सी और बातें हैं जो चीन के बारें में और उसके भविष्य के खतरों की ओर संकेत करते हैं। अगर समय रहते वहाँ की जनता ने इसे नहीं बदला तो आगे चल कर चीन पूरी दुनिया खास कर भारत के लिए खतरा बन जाएगा। 

लेख : वेदान्त झा  

संपर्क  : +916261667774 





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