जगदलपुर : भारतीय विद्यालयों में हिंदुओं के विरुद्ध धार्मिक घृणा फैलाने के लिये एन.सी.ई.आर.टी. के माध्यम से शिक्षाविदों द्वारा वर्षों से षड्य...
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जगदलपुर : भारतीय विद्यालयों में हिंदुओं के विरुद्ध धार्मिक घृणा फैलाने के लिये एन.सी.ई.आर.टी. के माध्यम से शिक्षाविदों द्वारा वर्षों से षड्यंत्र किये जाते रहे हैं । इस षड्यंत्र के सुदृढ़ धागे पूरे देश में फैले हुये हैं । ईसाई मिशनरी स्कूलों की छोड़िये, सरकारी विद्यालयों में भी यह सब धड़ल्ले से होता रहा है, अभी भी हो रहा है । हिंदू अन्य धर्मावलम्बियों को उनके धर्म के विरुद्ध कभी कोई आपत्तिजनक शिक्षा नहीं देता किंतु ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा ही नहीं बल्कि वामपंथी हिंदुओं और दिग्भ्रमित वनवासियों द्वारा भी सनातनधर्म के विरुद्ध घृणा का बीजारोपण विद्यालयों में आज भी किया जा रहा है जबकि जे.एन.यू. वालों को लगता है कि भारत में उन्हें आज़ादी नहीं मिल सकी है जिसे वे छीन कर ले लेंगे। बस्तर सम्भाग के कोण्डागाँव जिले में गिरोला विकासखण्ड के बुंदापारा ग्राम स्थित शासकीय उच्चतर प्राथमिकशाला के शिक्षक श्रीचरण मरकाम ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने और उपवास करने पर छात्रों को पीट दिया । गुरु जी सनातनधर्म के सिद्धांतों, मान्यताओं और परम्पराओं के विरोधी हैं इसलिए छात्रों को भी अपने जैसा ही बना देना चाहते हैं जिसके लिए वे बालमन में धार्मिक-घृणा का बीजारोपण करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते । विद्यालय के छात्रों के अनुसार गुरु जी ने ज्ञान प्रदान करते हुये अपने छात्रों को बताया कि “हिंदुओं की गायत्री काल्पनिक है, सरस्वती अशिक्षित है वह किसी को क्या ज्ञान देगी । मैं तुम्हारे भगवान को खूँदूँगा (कुचल दूँगा) । तुम लोग भी भगवान को मत मानो । श्रीकृष्ण की सात गर्ल-फ़्रेण्ड थी, वे लड़कियों को स्नान करते समय देखते थे और उनके कपड़े छुपाते थे...”।
हमारे देश में एक सुदृढ़ लॉबी है जो वनवासियों को हिंदू नहीं मानती; वनवासियों को भड़काया जा रहा है कि वे ही इस देश के मूलनिवासी हैं जबकि हिंदू लोग बाहर से आये हुये आक्रमणकारी हैं । मूलनिवासी एवं बाहरी आक्रमणकारी के कुतर्कों के साथ वनवासी ही नहीं, बौद्ध, सिख एवं जैन आदि परम्पराओं को भी हिंदूधर्म से पृथक करने के षड्यंत्र को समझना होगा । हम कबीलों में बँटे हुये अफगानी नहीं हैं, हमारी गौरवमयी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत रही है, जब तक हम इस विरासत को सहेजे रहेंगे तब तक भारत अखण्ड, समृद्ध और शांत बना रहेगा ।
हम शिक्षक को गुरु और आचार्य भी मानते हैं, आचार्य बह है जिसका आचरण अनुकरणीय हो । इस घटना से स्पष्ट है कि शासकीय विद्यालय के शिक्षक श्रीचरण मरकाम की शिक्षाओं और उनके आचरण का अनुकरण किया जाय तो भारत की नयी पीढ़ी घृणा के विष से भर उठेगी। अपने विषाक्त आचरण से शिक्षक की मर्यादाओं को तार-तार कर देने वाला कोई व्यक्ति क्या शिक्षक के पवित्र दायित्वों का निर्वहन कर सकने योग्य है ? जिलाधीश ने ग्रामीणों की लिखित शिकायत, जिसमें वीडियो और ऑडियो प्रमाण भी संलग्न किये गये हैं, पर शिक्षक को निलम्बित कर दिया है किंतु क्या यह पर्याप्त है? ज्ञान के मंदिर में घृणा की खेती करने वाले व्यक्ति को शिक्षक के गरिमामय पद बने रहने का क्या औचित्य है?
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