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समसामयिक कविता : "नारी का सम्मान" सुषमा अग्रवाल

★ नारी का सम्मान★ धरती के एक हिस्से में जब अफ़ग़ान की महिलाओं की स्थिति देखती, सुनती और पढ़ती हुं तो आत्मा भी सिहर जाती है। उनपर जुल्म और अत्या...

★ नारी का सम्मान★
धरती के एक हिस्से में जब अफ़ग़ान की महिलाओं की स्थिति देखती, सुनती और पढ़ती हुं तो आत्मा भी सिहर जाती है। उनपर जुल्म और अत्याचार की कहानी हो या धरती के किसी भी कोने में हो रहे महिलाओं पर अत्याचार की कहानी हो या भारत की जमीं पर ही बालिकाओं, महिलाओं से हो रहे दुष्कर्मों की दास्तां हो, इसके लिए हर देश के प्रत्येक नागरिक के लिए विचारणीय मुद्दा तो जरूर है। क्या इसे होते युं ही मुर्दों की भांति देखेंगे या फिर कैसे ठीक होगा इसपर कदम भी उठा पायेंगे?

पितृ-पक्ष के इन दिनों में मुझे पूरी दुनिया में उन सभी पीड़िताओं, बालिकाओं, महिलाओं जो शरीर रूप में नहीं हैं ,उनके लिए इस कविता में अपने भाव अर्पित करती हुं.....
पढ़ा खबरों में जब
अफगानी बहनों पर जुल्मों की दास्तां
दिल से निकल रहे अल्फ़ाज़
हो रही अंदर चीत्कार
नही है पल भर को भी चैन
बयां करने को इसे
शब्द भी पड़ जा रहें हैं कम।

श्मशान में भी दुष्कर्म
और बालिका के संग
क्या नाम दुं इन्हें
क्या कह पुकारूं इन्हें?
वहशी दरिंदें या आदमखोर भेड़िये
जैसे शब्द भी
छोटे पड़ जा रहे इनकी खातिर।

सोचने पर हुं मजबूर
आजाद भारत की जमीं पर हुं
या जमीं को हमने श्मशान ही बना दिया
मुर्दों की ही तो, होती नही है आत्मा।

दिल चाहता है
मांग लुं क्षमा
उन सभी दिवंगत
बालिकाओं और महिलाओं की आत्मा से
नहीं कर पा रहें हैं हम न्याय
अपनी अगली पीढ़ी से।

मत ले जाना ज़ख्म शरीर के
अपनी आत्मा पर तुम सब
जन्म ले सको जब फिर
लो मानवता की जमीं पर ही
मानवों के बीच ही लो जन्म
सम्बन्धों के संसार में 
फिर जी सको तुम सब।
                           - सुषमा अग्रवाल (रायपुर)

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