मध्य प्रदेश शासन के द्वारा बस्तर रियासत के राजा प्रवीण चंद्र भंजदेव के बस्तर भूतपूर्व शासक होने की मान्यता समाप्त करने पर उत्पन्न हुआ था असं...
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मध्य प्रदेश शासन के द्वारा बस्तर रियासत के राजा प्रवीण चंद्र भंजदेव के बस्तर भूतपूर्व शासक होने की मान्यता समाप्त करने पर उत्पन्न हुआ था असंतोष--भरत कश्यप
लोहण्डीगुड़ा: सर्व आदिवासी समाज युवा जिला उपाध्यक्ष भरत कश्यप ने कहां 31मार्च 1961 गोली कांड में शहीदों का याद में, इस वर्ष शहीद स्मारक उसरीबेड़ा में 31मार्च को शहादत दिवस को भव्य मनाने की तैयारी जोर-शोर पर। बस्तर का खूनी इतिहास इस बात का साक्षी हैं, कि जब-जब सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक आंदोलन हुई हैं, तब तब आदिवासियों की शहादत हुई हैं, चाहे वह 1876 के मुरिया विद्रोह हो या 1910 की भूमकाल की बात करें। वहां-वहां मूल निवासियों का कुर्बानी हुई है। लेकिन देश के आजादी 13 वर्ष बाद बस्तर के लोहण्डीगुड़ा में गोली कांड 31 मार्च 1961 में हुई गोलीकांड में सैकड़ों आदिवासियों शहीद हुए लेकिन इतिहास में 12 लोगों को ही पहचान कर उनका नाम दर्ज किया गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने 11फरवरी 1961 को पहले प्रवीण चंद्र भजदेव को राज्य विरोधी होने के नाम पर गिरफ्तार किया गया फिर उनकी बस्तर के भूतपूर्व शासक होने की मान्यता भी समाप्त कर दी गई, इसे साथ ही छोटे भाई विजय चंद्र भंजदेव को भूत पूर्व शासक होने का अधिकार तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने दे दिए थे।
जब सरकार के पदस्थ कुछ अधिकारियों ने तस्करों के साथ मिलकर सांठ-गांठ कर प्रवीण चंद्र भंजदेव को षडयंत्र पूर्वक पद से हटा दिया 13फरवरी को प्रवीण चंद्र भंजदेव को नरसिंहगढ़ मध्य प्रदेश के जेल में बंद कर दिया गया, जब सबको पता चला कि प्रवीण चंद्र भंजदेव राजा के पद से हटाकर उनके छोटे भाई विजय चंद्र भंजदेव "लाल" को राजा बनाया गया तो बस्तर के आदिवासी को यह बात कबूल नहीं हुई विजय चंद्रभान देव को राजा मानने से साफ मना कर दिया गया जगह-जगह मीटिंग बुलाई गई गांव के हाट बाजारो में बताया कि राजा को जेल में बंद कर दिया गया है। उसके जगह विजय चंद्रभान देव को राजा बनाया गया है, ग्रामीण क्षेत्र से राजा प्रवीण चंद्र भंजदेव को देखने के लिए गए, परिसर में चारों तरफ पुलिस बलों को तैनात कर प्रवेश करने नहीं दिया गया। राजा से मिलने के लिए उन्हें एक महीने तक इंतजार कर रहे थे। लेकिन राजा के से मुलाकात नहीं हुई उनके साथ विश्वास घात हो चुका था। विजय चंद्रभान देव का जगह-जगह विरोध हो रहा था। 30 मार्च को रणनीति का केंद्र सिरीसगुड़ा और बड़ांजी में बड़ी आमसभा हुई, सिरीसगुड़ा के बैठक में यह तय किया गया कि कल किसी भी हालत में लोहण्डीगुड़ा थाना का घेराव करना है इस बैठक में जगदलपुर, लोहण्डीगुड़ा, तोकापाल, बस्तर, दरभा ब्लॉक के आदिवासियों समुदाय ने उपस्थित होकर हूंकार भरी शाम को बड़ांजी में गुप्त बैठक हुई जिसमें तय हुई कि बेलियापाल में सभी लोग उपस्थित कल होना है, सभी को सूचित किया गया था कि अपने-अपने अनुसार तीर, धनुष ,भाला, फरसा और अन्य हथियार लेकर बेलियापाल पहुंचना है, बाजार के मार्ग को बदलकर गुप्त सूचना देते बड़ांनी होते हुए सीधा बेलियापाल जाने का तय हुआ, उस रात लकड़ी के सभी पुलों को भी तोड़ने का निर्णय लिया गया। गुप्त सूचना पुलिस प्रशासन को पहले से मिला था। 31मार्च की रणनीति के केंद्र रहे बेलियापाल में सुबह से ही लोग एकत्रित होने लगे और दिन को देखते ही देखते 10 से 15हजार आदिवासीयों हाथों में तीर, धनुष, फरसा, आदि हथियार लेकर बेलियापाल के बनवाड़ी में उपस्थित हुए।
लगभग 1000 सुरक्षा बल को गुप्त रूप से लोहण्डीगुड़ा के छोटे जंगलों में तैनात किया गया था। इधर आदिवासियों प्रदर्शनकारियों को पता भी नहीं था, कि दोपहर के बाद जुलूस के रूप में लोहण्डीगुड़ा थाना की ओर रवाना हुए इधर नव घोषित पूर्व शासक विजय चंद्र के अधिकारियों व जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भीड़ को समझा-बुझाकर शांत कराने का प्रयास किया था। लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला देखते ही देखते भीड़ और बढ़ने लगी भीड़ को रोकने का बहुत प्रयास किया गया, लेकिन यह जन समुदाय नहीं माने नारे लगाने लगे और अपनी मांगों के समर्थन के विरोध कर रहे थे। हजारों सुरक्षाबल पुलिसकर्मियों ने भीड़ को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश किया किंतु भीड़ जो काफी उग्र हो चुकी थी। पुलिस कर्मी भीड़ का नियंत्रण करने से असफल रहे आंदोलनकारियों धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की और बढ़ती ही चली गई और पुलिस कर्मियों व अधिकारियों को जन सैलाब पीछे धकेल दिया इधर पुलिस अधिकारियों ने समझाने की कोशिश कर रहे थे, भीड़ को चितर-बितर करने के लिए आंसू के गोले छोड़े गए लेकिन भीड़ तथा उग्र स्थिति बनी हुई थी, पुलिस कर्मियों ने डंडों से आदिवासियों ने प्रतिरोध स्वरुप तीर चलाने शुरू कर दिए भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस कर्मियों ने आदिवासियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया। इस गोलीकांड में आदिवासियों समुदाय के सैकड़ों लोग शहीद हुए लेकिन इतिहास के पन्नों में केवल 12लोगों का ही दर्ज है। शहीदों का नाम 01. जोगाराम ग्राम पारापुर, 02.भगतु राम ग्राम-कुम्हली,03. सुखदेव ग्राम-चित्रकोट,04. रैयतु राम ग्राम-चित्रकोट,05.अन्तू ग्राम चित्रकोट,06 आयता ग्राम चित्रकोट,07.टांगरू ग्राम- चित्रकोट, 08. ठुरलू ग्राम- धाराऊर, 09.सोनाधर ग्राम-रतेंगा,10. पायका ग्राम-आंजर,11. लिंगूराम ग्राम-साडरा,12.चरन ग्राम-चित्रकोट का ही पहचान मिल सका है। विद्रोह के 59 आदिवासियों के खिलाफ मामले दर्ज कर सभी को न्यायालय जगदलपुर में पेश किया था। पुलिसिया आतंक को झेलते कोर्ट कचहरी का चक्कर काटते रहे। वर्षों तक शहीदों के परिवार को शासन से ना ही सहयोग मिला, ना ही शहीदों का दर्जा दिया गया। गोली कांड का लगभग 61 वर्ष बाद भी राज्य सरकार ने ना ही शहीदों का दर्जा और शहीदों के परिवार को सहयोग दिया है। आदिवासी समाज में ऐसे कई घटनाएं घटित हुई हैं जिसमें आज तक परिवार को ना ही सहयोग राशि दिया गया ना ही शहीद घोषित किया गया है। 25 मार्च 1966 को बस्तर के महाराजा प्रवीण चंद्र भंजदेव की राजमहल में गोलियों से मारकर हत्या कर दी गई।
बस्तर के रक्तरंजित इतिहास का एक अध्याय। सभी शहीदों को नमन
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