छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कांग्रेस सरकार द्वारा पेश बजट को खेती-किसानी के संकट को नजरअंदाज करने वाला बजट कहा है। किसान सभा का कहना है कि कृषि क्...
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छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कांग्रेस सरकार द्वारा पेश बजट को खेती-किसानी के संकट को नजरअंदाज करने वाला बजट कहा है। किसान सभा का कहना है कि कृषि क्षेत्र में जिन उदारवादी नीतियों को लागू किया जा रहा है, उसके चलते अब कृषि संकट समूची ग्रामीण आबादी के संकट में बदल रहा है। इस संकट की अभिव्यक्ति प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती आत्महत्याओं में हो रही है। लेकिन यह बजट इस चुनौती से दो-चार होने के लिए तैयार नहीं है।
आज यहां जारी बजट प्रतिक्रिया में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि प्रदेश की ग्रामीण जनता नकली खाद-बीज तथा बिजली-पानी के अनाप-शनाप बिलिंग से परेशान है, लेकिन बजट में इसका कोई निदान नहीं है और बुनियादी मानवीय सुविधाओं में निजीकरण की नीति को ही आगे बढ़ाता है। कृषि के क्षेत्र में और ग्रामीण विकास के मद में जो बढ़ोतरी दिखाई देती है, उसे बढ़ी हुई महंगाई निष्प्रभावी कर देती है।
उन्होंने कहा कि पूरा बजट मनरेगा जैसी रोजगार प्रदाय योजना के बारे में चुप है, जबकि कोरोना संकट के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को थामे रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस भूमिका को देखते हुए और ग्रामीणों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए मजदूरी दर और काम के दिनों की संख्या बढ़ाये जाने तथा इस योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने की जरूरत है। लेकिन प्रस्तुत बजट से ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप इस योजना का क्रियान्वयन अब इस सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।
किसान सभा नेताओं ने 76000 एकड़ से अधिक वन भूमि को राजस्व भूमि में बदलने की सरकार की घोषणा को गैर-कानूनी बताया है और कहा है कि आदिवासी वनाधिकार कानून किसी भी सरकार को इसकी इजाजत नहीं देता। उन्होंने कहा कि वन भूमि पर आदिवासियों को अधिकार पत्रक जारी करने के बजाय इस भूमि पर उद्योग लगाने की सरकार की मंशा से स्पष्ट है कि वह जल-जंगल-जमीन-खनिज और प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेटों को सौंपने के लिए लालायित है। इससे न केवल 35000 से अधिक आदिवासी परिवारों को विस्थापित होना पड़ेगा, बल्कि पर्यावरण व जैव-विविधता का भी भारी विनाश होगा। इसलिए कांग्रेस सरकार के इस आदिवासी विरोधी, पर्यावरण विरोधी कदम का पुरजोर विरोध किया जाएगा।
किसान सभा नेताओं ने 5वीं अनुसूची के प्रावधानों और पेसा कानून को लागू करने की पुरजोर मांग की है और कहा है कि ग्राम सभा की सहमति के बिना विकास के नाम पर आदिवासियों पर कोई भी परियोजना थोपी नहीं जानी चाहिए।
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