लाला जगदलपुरी बस्तर के कबीर थे - त्रिलोक महावर जगदलपुर : राष्ट्र वंदन अतीत का अभिनंदन कार्यक्रम के अंतर्गत हिंदी साहित्य भारती( अंतरराष्ट्...
लाला जगदलपुरी बस्तर के कबीर थे - त्रिलोक महावर
जगदलपुर : राष्ट्र वंदन अतीत का अभिनंदन कार्यक्रम के अंतर्गत हिंदी साहित्य भारती( अंतरराष्ट्रीय) के पटल पर प्रतिष्ठित साहित्यकार श्रद्धेय लाला जगदलपुरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर 8 मई 2022 संध्या 7:00 बजे से परिचर्चा का आयोजन किया गया। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और ख्यातिनाम साहित्यकार त्रिलोक महावर ने विचार रखते हुए कहा कि लाला जगदलपुरी बस्तर के कबीर थे। उन्होंने समृद्ध बस्तर के शोषण पर अनेक कविताएं लिखीं हैं। वे बड़े ही मुखर रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में विविधता है।
उदारवादी दृष्टिकोण के होने के नाते उनकी रचनाओं में वैश्विकता के दर्शन होते हैैं। लालाजी एक आत्मप्रेरित रचनाकार थे। जब तक रचनाकार आत्मप्रेरित नहीं होते तब तक उनकी अंतः चेतना जागृत नहीं होती। वे केवल साहित्यकार ही नहीं, एक कुशल संपादक और प्रेरक व्यक्ति थे। उनके सानिध्य में अनेक लोगों ने साहित्य की शिक्षा ली। भोपाल से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ लक्ष्मी नारायण 'पयोधि' ने कहा कि लाला जगदलपुरी एक कुशल शब्द शिल्पी थे। उनके साहित्यिक अवदान को नहीं भुलाया जा सकता। लाला जगदलपुरी जी ने हिंदी साहित्य की अतिरिक्त लोक भाषा हलबी, भथरी और छत्तीसगढ़ी में भी पर्याप्त रचना की। वे दृष्टा भी थे और विचारक भी। संवेदनशीलता उन्हें जन्म से ही मिली थी जो कि उनकी रचनाओं यत्र-तत्र दिखाई देती है, इसीलिए वे एक संवेदनशील रचनाकार के रूप में जाने जाते रहे हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय उपाध्यक्ष डॉ नरेश मिश्र ने की। डॉ मिश्रा ने कहा कि मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचल में इतने बड़े साहित्यकार हुए, जिन्हें आज तक सही ढंग से नहीं जाना गया। आज के कार्यक्रम से उनका व्यक्तित्व और कृतित्व उभर कर आया है। मैं महामना लाला जगदलपुरी के विशाल व्यक्तित्व को नमन करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनके अप्रकाशित साहित्य को शीघ्र ही प्रकाशित कराने का कार्य बस्तर के साहित्यकार जगत द्वारा किया जाएगा। हिंदी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बलदाऊ राम साहू ने कहा कि लालाजी में न पाने की लालसा थी और न ही उन्हें खोने का भय था। वे निर्भीक और स्वाभिमानी रचनाकार थे। वे अपनी बात निरपेक्ष भाव से कहते थे यही कारण है कि उन्हें साहित्य ऋषि कहा जाता है। लालाजी एक संत स्वभाव के रचनाकार थे।उनकी रचनाओं में बड़ी गहराई है। वे अपनी बात मुखर होकर कहते थे। हम उन्हें विद्रोही स्वर के रचनाकार भी कह सकते हैं । पारिवारिक सदस्य के रूप में विनय श्रीवास्तव ने अपने विचार रखे हुए कहा कि लाला जगदलपुरी मेरे बड़े पिताजी थे। हम सब भाई-बहनें उनकी छत्रछाया में पले-बढ़े हैं। उनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा, उन्होंने अपने छोटे-भाई -बहनों के साथ हम सभी भाई- बहनों को भी अपना प्रेम और दुलार समान रूप से बांटा और हमें एक संस्कारवान व्यक्ति बनाने के लिए शिक्षित करते रहे। आज हम जो भी हैं उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिसाद है । कार्यक्रम का संचालन सहसंयोजक डॉ निधि द्विवेदी ने किया। आभार प्रदर्शन व सरस्वती वंदना रोशन बलुनी ने की ।
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