जगदलपुर : आसना स्थित बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर (बादल) संस्थान में पन्द्रह दिवसीय ढोकरा आर्ट प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। ...
जगदलपुर : आसना स्थित बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एंड लिटरेचर (बादल) संस्थान में पन्द्रह दिवसीय ढोकरा आर्ट प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में तेलंगाना से आए हुए शिल्पकारों ने ढोकरा शिल्प की बारीकियों का प्रशिक्षण बस्तर के शिल्पगुरुओं से प्राप्त किया।
इस शिविर में बस्तर के आलवाही गांव के शिल्पकार लुदूराम बघेल एवं मानुराम कश्यप ने प्रशिक्षण दिया। इस शिविर में तेलंगाना प्रान्त से अठारह शिल्पकारों ने कोवा भूमेश्वर, कोवा विजयलक्ष्मी, माड़वी तुलसी राम, माड़वी गणेश, आथराम दिलीप कुमार माड़वी मनोहर, उइका दादेराम, कोवा यशवंत राव, सूरपम श्रवण, उइका कबीरदास, माड़वी मरुथी, माड़वी बलवंत राव, कोवा देव राम, कोवा एकनाथ, कोवा गोपाल, उइका जलापथी, माड़वी भगवंत राव, माड़वी मोहन ने ढोकरा शिल्प की बारीकियां सीखीं। पन्द्रह दिवसीय इस शिविर का समापन दिनांक 17 जून को बादल संस्थान में किया गया।
समापन समारोह में प्रशिक्षणार्थियों को अध्यक्ष एवं कलेक्टर आमचो बस्तर हेरिटेज सोसायटी एवं बादल रजत बंसल जी की ओर से प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। शिविर का आयोजन बस्तर एकेडमी ऑफ डांस आर्ट एण्ड लिटरेचर बादल आसना में किया गया। 15 दिवसीय ढोकरा में प्रशिक्षण कार्यक्रम के सुचारू रूप से संचालन में अभिषेक चंद्राकार एवं राहुल पमार ने सहयोग प्रदान किया।।समापन समारोह में बादल संस्थान के अधिकारी और कर्मचारियों की उपस्थिति रही।
ढोकरा शिल्प कला क्या है?
ढोकरा कला दस्तकारी की एक प्राचीन कला है। बस्तर ज़िले के कोंडागाँव के कारीगर ढोकरा मूर्तियों पर काम करते हैं जिसमें पुरानी मोम-कास्टिंग तकनीक का उपयोग करके मूर्तियाँ बनाईं जाती हैं।
पृष्ठभूमि
भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न कलाओं व संस्कृतियों का मिश्रण देखने को मिलता है। सभी प्रकार की कलाएँ किसी-न-किसी रूप में इतिहास से जुडक़र अपनी गौरवशाली गाथा का बखान करती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की ढोकरा कला भी इन्हीं कलाओं में से एक है। इस कला का दूसरा नाम घढ़वा कला भी है। यह कला प्राचीन होने के साथ-साथ असाधारण भी है।
इस कला में तांबा, जस्ता व रांगा (टीन) आदि धातुओं के मिश्रण की ढलाई करके मूर्तियाँ, बर्तन, व रोज़मर्रा के अन्य सामान बनाए जाते हैं।
इस प्रक्रिया में मधुमक्खी के मोम का इस्तेमाल होता है। इसलिये इसे मोम क्षय विधि (Vax Loss Process) भी कहते हैं।
इस कला का उपयोग करके बनाई गई मूर्ति का सबसे पुराना नमूना मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त नृत्य करती हुई लड़की की प्रसिद्ध मूर्ति है।
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