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सुनो सेकुलरों, नूपुर शर्मा का इस्तीफ़ा देश हित में त्याग है, समझे!(व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)

भई सेकुलरवालों, ये तो तुम लोगों की सरासर बेईमानी है। नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल वगैरह की घर के अंदर की गाली-गलौज बाहर तक सुनाई देने भर से भडक़े ...



भई सेकुलरवालों, ये तो तुम लोगों की सरासर बेईमानी है। नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल वगैरह की घर के अंदर की गाली-गलौज बाहर तक सुनाई देने भर से भडक़े अरब के शेखों को शांत कराने के लिए, मोदी जी की सरकार ने उन्हें जरा सा 'फ्रिंज एलीमेंट' क्या बता दिया, भाई लोगों ने दुनिया भर में "भारत को बदनाम कर दिया, देश का सिर झुका दिया" का शोर मचाकर रख दिया है। और सिर्फ देश की बदनामी का शोर मचाने तक ही रहते, तो फिर भी मोदी जी बर्दाश्त कर लेते। पर ये तो शर्मा और जिंदल के बहाने, साक्षात मोदी जी को ही बदनाम करने पर उतर आए हैं। कह रहे हैं कि पार्टी प्रवक्ताओं ने तो साक्षात बारहवें अवतार को झूठा साबित कर दिया और वह भी हाथ के हाथ। उधर मोदी जी ने गुजरात में इसका एलान किया कि आठ साल में और चाहे कुछ भी किया हो या नहीं किया हो, पर ऐसा न कुछ किया और न किसी को करने दिया, जिससे देश का सिर झुकता हो, और इधर दिल्ली में जुगल जोड़ी ने हाथ के हाथ देश की मुंंडी पकड़ी और झुका दी! सिर झुकाना छोड़ो, देश की नाक रगड़वा दी नाक और वह भी मुए अरब शेखों के सामने! उनका तो रंग तक हमारे जैसा ही है; उनके पास है ही क्या तेल के सिवा!

पर हम तो यही कहेंगे कि ये सेकुलरवाले खामखां में तिल का ताड़ बना रहे हैं। देश का सिर झुका दिया, देश की नाक रगड़वा दी, ये सब राष्ट्र विरोधी ताकतों का झूठा प्रचार है। मोदी जी के रहते हुए कोई भारत को बदनाम करने की सोच तक नहीं सकता है, फिर नाक-वाक रगडऩे-रगड़वाने का तो सवाल ही कहां उठता है। मामूली सी आपत्ति का मामला था। आपत्ति भी दस दिन पुरानी बात पर। बात भी फ्रिंज तत्वों की कही हुई। और आपत्ति भी सिर्फ खुद को मुस्लिम कहने वाले देशों की। बाकी दुनिया की तो आपत्ति तक नहीं, बस संयुक्त राष्ट्र संघ की एक मामूली सी सीख -- सभी धर्मों का, उनका पालन करने वालों की आस्थाओं का आदर होना चाहिए। यानी सारी दुनिया की आपत्ति तक का सबूत नहीं और प्रचार दुनिया भर में देश की बदनामी का। यह सेकुलरवालों की बेईमानी नहीं, तो और क्या है?
 
रही बात राजदूत को बुलाए जाने की, राजदूत के सफाई देने की और इसके सारी दुनिया को बताए जाने की, तो राजदूतों का यही तो काम है और कूटनीति इसी का तो नाम है। इसे विश्व गुरु के आसन पर सवार देश की इज्जत-बेइज्जती का मामला बनाने की कोशिश क्यों की जा रही है। सेकुलरवाले समझ लें, सिर्फ देश के राजदूत के सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ताओं को फ्रिंज बताने से और सत्ताधारी पार्टी के हाथ के हाथ प्रवक्ताओं को हटाने से, ऐसा कोई मामला देश का सिर झुकने-झुकाने का मामला किसी भी तरह से नहीं हो जाता है। इसके बावजूद, कोई अगर इस सब के बहाने से जानबूझकर देश के तने हुए सिर को झुका हुआ बताने, दिखाने या प्रचारित करने की कोशिश करता है, तो इस एंटीनेशनल कृत्य के लिए कानून उसके साथ चाहे जो भी सलूक करे, मोदी जी से मन से माफी कभी नहीं पा सकेगा।
 
सच पूछिए, तो सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ताओं को उनकी अपनी सरकार के फ्रिंज बताने का मामला हो या उन्हें पार्टी निकाला दिए जाने का मामला हो, इन चीजों को नाहक बहुत ज्यादा तूल दिया जा रहा है। वर्ना कौन नहीं जानता है कि भगवा पार्टी में कुछ भी परमानेंट नहीं होता है, न रहना और न निष्कासन। आने वाले उतने बाहर नहीं जाते हैं, जितने बाहर निकाले जाने वाले, पलट-पलट कर वापस घर लाए जाते हैं। फिर नूपुर शर्मा को तो निकाला तक नहीं गया है, सिर्फ छ: साल के लिए सस्पेंड किया गया है। यानी अगर पहले ही नहीं हो गयी तब भी, छ: साल बाद तो वापसी होनी ही होनी है। जो इसे सजा बताकर, उनके जुर्म का सबूत मनवाना चाहते हैं, इतना तो उन्हें भी मानना पड़ेगा कि अगर यह सजा है, तो बहुत हल्की सजा है। इतनी हल्की कि जुर्म में वजन पैदा करने के लिए दिल्ली पुलिस को एफआइआर में दर्जनों नाम और जोड़ने पड़ गए। अब जब सजा ही मामूली है, तो जुर्म बड़ा कैसे हो सकता है? और सच पूछिए, तो इसे सजा की तरह देखना ही गलत है। शर्मा और जिंदल ही नहीं, करोड़ों भगवा-भक्त भी नहीं देखते हैं। यह सजा का नहीं कुर्बानी का मामला है। देश के लिए भी और पार्टी के लिए भी; देश की ओर से भी और पार्टी की ओर से भी। शर्मा, जिंदल, भगवादल, भारत, सब के त्याग को सजा कहना, मां भारती का अपमान नहीं तो और क्या है?
 
और हां! फ्रिंज-फ्रिंज कहकर, राष्ट्रहित के लिए अपने प्रवक्ता पद का त्याग करने वालों का निरादर करना तो सेकुलरवालों को भी शोभा नहीं देता है। उन्हें हम याद दिला दें कि राष्ट्र हित के लिए त्याग सिर्फ विदेशी शासन से आजादी की लड़ाई में किया जाने वाला त्याग ही नहीं होता है कि बेचारे भगवाई पचहत्तर साल पहले त्याग करने में चूक गए, तो हमेशा के लिए उनकी गाड़ी ही निकल गयी। अमृत वर्ष में वे अमृत का त्याग कर रहे हैं और विष के आचमन के बाद, अब विष का वमन भी छोडक़र, कुछ समय तो नीलकंठ ही रहेंगे। नीलकंठ से बड़ा त्यागी कौन है? वैसे भी कूटनीतिज्ञों की भाषा में फ्रिंज का अर्थ कुछ और है, संस्कारी पार्टी के लिए और उसकी सरकार के लिए भी, फ्रिंज का अर्थ कुछ और है। पश्चिमी संस्कृति में ही है कि फ्रिंज और कोर, अलग-अलग होते हैं। हमारी सनातनी संस्कृति में ऐसी दूरी है ही नहीं। यहां सब एक ही है, जाति को छोडक़र। संस्कारी पार्टी में फ्रिंज और कोर में अभेद की स्थिति है--कहियत भिन्न न भिन्न। जो नूपुर हैं, वही योगी हैं, वही मोदी हैं। फ्रिंज है जहां, कोर भी होगा वहां।

अंत में एक बात और। दुनिया के सामने "देश का सिर झुका दिया, सिर झुका दिया" का शोर मचाने वाले भी, झुकने के बहाने से ही सही, कम से कम यह तो मान रहे हैं कि इस प्रकरण से पहले तक न सिर्फ देश के कंधों पर सिर था, बल्कि गर्व से तना हुआ सिर था। गर्व से तना हुआ सिर था, तभी तो उसके झुकने-झुकवाने की बातें हो रही हैं। यह मोदी जी के आठ सालों की उपलब्धि है। उनके नये इंडिया के पास एक अदद गर्व से तना हुआ सिर है, जिसे वक्त-जरूरत पर झुकाया भी जा सकता है। खांटी एंटीनेशनल ही होंगे जो सिर का झुकना-झुकाया जाना तो देखते होंगे, पर गर्व से तने हुए सिर का होना देखेंगे ही नहीं। रही बात पहले कभी देश का सिर ऐसे न झुकाए जाने की, तो उसकी वजह सिंपल है। सिर होगा, तभी न तनेगा, झुकेगा। पहले सिर ही नहीं था, तो कोई झुकवाता क्या? शर्मा-जिंदल की जोड़ी ने याद दिलाया है, तब न हमें देश का सिर याद आया है। सो थैंक यू मोदी जी, अमृत काल से पहले-पहले नये इंडिया का नया सिर फिट कराने के लिए।
 
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं।)

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