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कहीं दूसरे भूमकल की शुरुआत न हो जाए : अरविंद नेताम

जगदलपुर : बस्तर जिला पत्रकार संघ भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि "आज मु...

जगदलपुर : बस्तर जिला पत्रकार संघ भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि "आज मुख्य रूप से जिन दो मुद्दों पर हम इस पत्रकार वार्ता में चर्चा करेंगे, उसका दूरगामी परिणाम भविष्य में छत्तीसगढ़ राज्य में देखने को मिलेगा।" उन्होंने अपनी बातों की शुरुआत करते हुए नारायणपुर में हुए पत्रकारों और आम नागरिकों के साथ बदसलूकी को राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया। उन्होंने नारायणपुर एसपी द्वारा रावघाट मुद्दे पर "मधुमक्खी के छत्ते पर हाथ मत डालो" वाले कथन का विरोध करते हुए एसपी के द्वारा नेतागिरी किए जाने की बात कही। पुलिस पर आरोप लगाते हुए वे बोले कि "किसी भी संवैधानिक व्यवस्था से हटकर वहां की पुलिस दादागिरी कर रही है। जो एक विशेष संस्थान या व्यक्ति की चापलूसी मात्र है।"




अरविंद नेताम ने रावघाट परियोजना से आदिवासी संस्कृति पर भविष्य में आने वाले खतरे के बारे में बताते हुए कहा कि "इस परियोजना में पुलिस द्वारा आंतरिक अशांति का हवाला देकर बाहरी व्यक्तियों या पत्रकारों के आने पर बैन लगा दिया। जो उत्तर पूर्वी राज्यों में हुई स्थिति जैसा माहौल निर्मित किया, जो षड्यंत्र है। उन्होंने पत्रकारों से सत्ताधारी या विपक्षी पार्टी की विचारधारा से हटकर आग्रह किया कि "पत्रकार ही अब बस्तर को बचा सकते हैं, परियोजनाओं से अधिक पेसा कानून, वन भूमि अधिकार आदि कानूनों से आदिवासियों का भला हो सकता है।" उन्होंने साल के वनों के बारे में बताया कि "नारायणपुर में स्थित मेतला रिजर्व फॉरेस्ट है, वहां के साल के पेड़ों का वन अद्भुत है। साल का पेड़ लगाना, और उसे विकसित करना बहुत कठिन कार्य है।" उन्होंने आगे कहा कि "हमने वहां के वनों और पर्यावरण के विषय में भिलाई स्टील प्लांट से भी बात की मगर हमें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकारों के इस तरह के रवैया से परिणाम स्वरूप कहीं दूसरे भूमकाल की शुरुआत ना हो जाए, या बस्तर को एक अलग राज्य बनाने की मांग जोर न पकड़ ले, जैसे उड़ीसा के कोरापुट के आसपास इन्हीं सब से त्रस्त आकर एक अलग पर्वत राज्य की मांग कई वर्षों से आदिवासियों द्वारा की जा रही है। इन दिनों बस्तर में कई आंदोलन किए जा रहे हैं और ऐसी स्थिति निर्मित होना स्वाभाविक है। 


12 जनजातियों को आदिवासी के रूप में मान्यता पर कहीं यह बात :

सर्व आदिवासी समाज की ओर से अरविंद नेताम ने राज्य और केंद्र सरकार की सराहना करते हुए 12 जनजातियों को उनका हक दिए जाने के लिए दोनों सरकारों का आभार व्यक्त किया। इस मुद्दे पर किसी एक सरकार के द्वारा पूरा श्रेय लेने को गलत ठहराया। उन्होंने छोटी छोटी लिखावटी मात्रा या कागजी त्रुटियों की वजह से इतनी बड़ी आबादी को अब तक अपने अधिकारों से वंचित रखने की निंदा की। उन्होंने इन सभी आदिवासी समाजों के पिछले 14 वर्षों के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को अब गंभीरता से विचार करने के बारे में कहा। वहीं बस्तर दशहरे में सरकार द्वारा रुपयों की देनदारी में देरी पर व्यंग करते हुए अरविंद नेताम ने बस्तर दशहरे को सरकार की बजट में विशेष रूप से शामिल किए जाने के बारे में कहा। 


महारा समाज के साथ हुआ है अन्याय : राजाराम तोड़ेम और दशरथ कश्यप 

पूर्व विधायक व सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय उपाध्यक्ष राजाराम तोड़ेम व बस्तर अध्यक्ष दशरथ सिंह कश्यप ने महारा समाज के साथ अब तक हो रहे अन्याय के बारे में बताया। दशरथ सिंह कश्यप ने बताया कि "महारा समाज की आबादी एक लाख के आसपास है। मगर आज तक यह बस्तर का सबसे वंचित तबका रहा है। केंद्रीय मंत्री अरविंद मुंडा ने अपने बस्तर प्रवास में इनकी समस्याओं से अवगत होने के बाद सरकार से सिफारिश की थी कि उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए।" उन्होंने आगे बताया कि "18 दिसंबर 2002 को जब प्रदेशों में महार व मेहर जाति को इसमें शामिल किया जा रहा था, तब छत्तीसगढ़ में एक बड़ी चूक हो गई और यहां के महारा समाज को अब तक इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।" उन्होंने अंत में कानून की पेचीदगी और गजटेशन की प्रक्रिया की कठिनाई से महारा समाज को हुए नुकसान से आजाद कराते हुए, अधिकार दिए जाने की सिफारिश की। वहीं राजाराम तोड़ेम ने बीजापुर के गोंड समाज व संभाग में पाए जाने वाले अमनित भतरा समाज को अब तक छोटी-छोटी कागजी त्रुटि से अधिकार नहीं दिए जाने पर प्रकाश डाला। इनकी स्थिति और भविष्य को सुधारने पर सरकार को विचार करने को कहा।

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