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सामाजिक नियमों को न मानने पर करेंगे दंडित और मिलेगी गांव निकाला की सजा : राजा राम तोड़ेम

जगदलपुर (वेदांत): डीलमिली मामले में छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय उपाध्यक्ष राजा राम तोड़ेम और बस्तर जिला अध्यक्ष दशरथ सिंह कश्यप...

जगदलपुर (वेदांत): डीलमिली मामले में छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय उपाध्यक्ष राजा राम तोड़ेम और बस्तर जिला अध्यक्ष दशरथ सिंह कश्यप ने विरोध प्रदर्शन की वजहों पर बात की। बता दें डीलमिली ग्राम की महिला हिड़मे सोढ़ी का देहांत 29 अगस्त को होने के बाद कुछ लोगों द्वारा तुरंत क्रिश्चियन पद्धति से अंतिम संस्कार कर दिया था। जिसके बाद रिश्तेदारों और ग्राम वासियों के द्वारा विरोध किया गया। विवाद गरमाता गया और उसके बाद सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी आगे आ गए। विरोध के तहत दो दिन पूर्व प्रदर्शनकारियों ने मार्ग अवरूद्ध कर दिया था। जिससे प्रशासन में हड़कंप मच गया था। इसी विषय आदिवासी समाज से हमने चर्चा की।

यह था पूरा मामला :
सोमवार की रात आदिवासी समाज की हिड़मे नाम की महिला का निधन हो गया था। ग्रामीणों का आरोप है कि महिला के शव को आदिवासी संस्कृति की रीति रिवाजों को न मानकर, मिशनरी के लोगों द्वारा प्रशासन से मिल कर आनन फानन में क्रिश्चियन रिवाज से दफनाया गया। जबकि उसके रिश्तेदार और अन्य करीबी लोग वहां पहुंच भी नही पाए थे। इस घटना के बाद आदिवासी समाज के लोग और महिला के रिश्तेदार बड़ी संख्या में इकट्ठे होकर इसका विरोध करने लगे। और करीब दो घंटे राष्ट्रीय राजमार्ग बंद किया गया।
चक्काजाम में छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज से राजाराम तोड़ेम (प्रांतीय उपाध्यक्ष, छ. ग. सर्व आदिवासी समाज), दशरथ कश्यप (बस्तर जिला अध्यक्ष), प्रेमनाथ नाग ( सचिव, नानगुर), महादेव नाग (अध्यक्ष, दरभा), बलदेव मंडावी (वरिष्ठ पदाधिकारी), महादेव कवासी (वरिष्ठ पदाधिकारी), तुलुराम कश्यप (अध्यक्ष, लोहंडीगुड़ा) मुख्य रूप से उपस्थित थे। 
हम इस घटना की करते है घोर निन्दा : राजा राम तोड़ेम
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांत उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक राजा राम तोड़ेम ने कहा कि "जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तब उसका अंतिम संस्कार समाज के लोग अपनी रीति रिवाज से करते है। यह उनका मौलिक अधिकार होता है। किंतु वहां उक्त मृतक महिला का कफन दफन करने का कार्य वहां के तहसीलदार के नेतृत्व में ईसाई मतानुसार किया गया। जिसकी हम घोर निन्दा करते हैं। बस्तर संभाग में पेसा कानून है, साथ ही पंचायती राज में आदिवासी समाज को विशेष महत्व मिलता है। ऐसे में प्रशासन द्वारा एक महिला का अंतिम संस्कार उसके रीति रिवाज से न करके इस प्रकार से क्रिश्चियन पद्धति से करना समझ के परे है। बस्तर में इस प्रकार का कृत्य लगातार बढ़ता जा रहा है। धर्मांतरण किसी भी तरह से आदिवासी समाज के हित में नहीं है। इस तरह की घटनाएं हमारी आदिवासी संस्कृति पर बड़ा आघात है, जिसे आज आदिवासी बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। इसलिए हम इस घटना का विरोध करते हुए ऐसे लोगों से अपील करते हैं कि जो लोग आदिवासी संस्कृति को छोड़ कर ईसाई बने हैं, वे वापस आए और आदिवासी संस्कृति की संवर्धन में योगदान दें।" उन्होंने आगे कहा कि "अगर धर्म परिवर्तन किए लोग इस तरह का कृत्य करते है तो हम इसका विरोध करते रहेंगे और इन्हे सामाजिक रूप से दंडित और गांव से बाहर निकलने का कार्य भी करेंगे। पूरे संभाग में इस तरह की घटनाएं बढ़ रहीं हैं।"

जहां दफन किया गया वह कोई मरघट नहीं : दशरथ कश्यप
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के बस्तर अध्यक्ष दशरथ कश्यप ने जानकारी दी कि "यह निष्कर्ष निकाला गया है कि उक्त महिला का शव दोबारा निकाल कर, आदिवासी रीति रिवाज से शव का दफन कफन का कार्य किया जायेगा। बस्तर में इस समय जो वर्ग संघर्ष की स्थिति हुई है, उसके लिए हमे निराकरण करना चाहिए। हमारी संस्कृति को बचाना बहुत जरूरी है। छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज अपनी परंपरा का निर्वहन करने के लिए, ऐसे कार्यों का विरोध करता है।" पारिवारिक सदस्यों के विषम में उन्होंने बताया कि "मृतिका का पोता भोंजा है, जो मिशनरी में सम्मिलित हो गया था। जानकारी मिली की उस परिवार के निकटतम परिजन वहां पहुंच ही नहीं पाए थे, और उसी मकान के पीछे के दरवाजे से शव को प्रशासन और मिशनरी के लोगों द्वारा 10 मिनट में ही गांव के किसी स्थान में, जो ग्रामीण मरघट नही है। वहां दफन कर दिया गया। और जानकारी मिली की वह जगह शव दफन करने के लिए सही जगह नहीं है। आदिवासी परंपरा में गांव में सामाजिक नियम के तहत सभी समाज के लोग शव का अंतिम संस्कार अपने पद्धति से करते हैं। लेकिन इस मामले में इन सारी बातों को ध्यान नही दिया गया। समाज प्रमुखों द्वारा मुख्य दंडाधिकारी और अनुविभागीय अधिकारी के नाम पर एक ज्ञापन सौंपा गया है।" उन्होंने कहा कि "इसपर अगर प्रशासन कोई ठोस कार्यवाही नही करता तो आगे और उग्र आंदोलन किया जा सकता है।"


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