जगदलपुर : हिन्दी के बहुचर्चित, प्रखर राजनीतिक चेतना संपन्न कवि, कहानीकार, गद्यकार, समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध की पुण्यतिथि पर प्रगतिशील ल...
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जगदलपुर : हिन्दी के बहुचर्चित, प्रखर राजनीतिक चेतना संपन्न कवि, कहानीकार, गद्यकार, समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध की पुण्यतिथि पर प्रगतिशील लेखक संघ जगदलपुर द्वारा लाला जगदलपुरी केंद्रीय ज़िला ग्रंथालय, जगदलपुर के युवोदय अकादमी कक्ष में मुक्तिबोध के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित कर विचार गोष्ठी रखी गयी। अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी, व्यंग्यकार सुभाष पांडे ने की। विशिष्ट अतिथियों में वरिष्ठ रंगकर्मी, आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक एम. ए. रहीम तथा प्राध्यापक त्रय सैय्यद महमूद अली, योगेंद्र मोतीवाला, छबिलाल सिदार थे।
आरंभ में मुक्तिबोध के जीवन संघर्ष और उनकी रचनाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी जगदीश चंद्र दास ने दी।
सुनील श्रीवास्तव ने मुक्तिबोध को आधुनिक कविता का प्रतिनिधि कवि कहा उन्होंने मुक्तिबोध की रचना प्रक्रिया में कला के तीन क्षणों का विस्तार से उल्लेख किया।
एम ए रहीम ने मुक्तिबोध की कविता दिमागी गुहांधकार का ओराँग उटाँग कविता का प्रभावशाली पाठ किया।
" स्वप्न के भीतर स्वप्न, विचारधारा के भीतर और एक अन्य
सघन विचारधारा प्रच्छन्न मस्तिष्क के भीतर एक मस्तिष्क
उसके भी अंदर एक और कक्ष
कक्ष के भीतर एक गुप्त प्रकोष्ठ और
कोठे के सांवले गुहांधकार में
मजबूत संदूक
दृढ़ ,भारी -भरकम
और उस संदूक के भीतर कोई बंद है
यक्ष
या कि
ओराँग उटाँग हाय
अरे ! डर यह है
न ओराँग उटाँग कहीं छूट न जाए
कहीं प्रत्यक्ष न यक्ष हो !!"
मुक्तिबोध की एक और कविता -"कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं - सफल जीवन बिताने में हुए असमर्थ तुम " का पाठ भी एम ए रहीम ने किया ।
" तुम्हारे पास, हमारे पास ,
सिर्फ एक चीज है
ईमान का डंडा है
बुद्धि का बल्लम है
अभय की गेती है
हृदय की तगारी है -
तसला है
नए-नए बनाने के लिए भवन आत्मा के
मनुष्य के
तो कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं -सफल जीवन बिताने में असमर्थ हुए तुम"
एम ए रहीम ने मुक्तिबोध को समाज की स्कैनिंग करने वाला रचनाकार कहा। छबीलाल सिदार ने मुक्तिबोध के परिवार और जीवन का विस्तार से परिचय दिया और कहा कि मुक्तिबोध ऐसे कवि हैं जिनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। अज्ञेय के संपादन में तार सप्तक प्रथम में मुक्तिबोध की प्रकाशित कविताओं का उल्लेख उन्होंने किया। उर्मिला आचार्य ने मुक्तिबोध की कविता " मैं तुम लोगों से दूर हूँ" का उल्लेख किया और कहा कि जीवन की संश्लिष्ट परिस्थितियों के चित्रण में मुक्तिबोध सदा सफल हैं ।मदन आचार्य ने मुक्तिबोध को प्रखर मार्क्सवादी चिंतन का कवि कहा। हिमांशु शेखर झा ने मुक्तिबोध को अस्तित्ववाद से प्रभावित बताया और कहा कि मुक्तिबोध को समझना आसान नहीं है। उन्हें समझने के लिए सबसे पहले आसपास की दुनिया को समझना जरूरी है। सुषमा झा ने "अभिव्यक्ति के सारे खतरे अब उठाने ही होंगे ,तोड़ने ही होंगे सारे मठ और गढ़" कवितांश का पाठ किया और प्रिय कवि मुक्तिबोध का स्मरण किया। चमेली नेताम ने कविता "चांद का मुंह टेढ़ा है "का पाठ किया। रामेश्वर प्रसाद चंद्रा ने मुक्तिबोध की रचनाओं के बारे में विस्तार से कहा कि उनकी रचनाओं का संसार बहुत व्यापक और गहन है ।योगेंद्र मोतीवाला ने मुक्तिबोध के रचना प्रक्रिया की जानकारी दी और बताया कि मुक्तिबोध बारंबार कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी की बात कहते हैं। उनके रचना संसार में बिंबो और प्रतीकों का अद्भुत प्रयोग है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में सुभाष पांडे ने मुक्तिबोध को सर्वथा समर्थ और अद्वितीय रचनाकार कहा। उन्होंने पाब्लो पिकासो की पेंटिंग गुएर्निका का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह पाब्लो पिकासो की इस पेंटिंग में आतंक, नैराश्य, विभीषिका और जीवन के दूसरे उलझनों का चित्रण मिलता है, उसी तरह मुक्तिबोध का रचना संसार इन सब को समेटे हुए है ।कार्यक्रम का संचालन जगदीश चंद्र दास ने और आभार प्रदर्शन मदन आचार्य ने किया। इस गोष्ठी में गायत्री आचार्य, राजेश सेठिया, विधु शेखर झा, डॉ.रीता शुक्ला भी शामिल थे।
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