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गीता जयंती के उपलक्ष्य में व्याख्यान माला और काव्य संध्या का हुआ आयोजन

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जगदलपुर : राष्ट्रीय कवि संगम जिला इकाई बस्तर की ओर से युवोदय अकादमी सभागार में गीता जयंती के उपलक्ष में व्याख्यानमाला एवं कवि गोष्ठी का आयो...

जगदलपुर : राष्ट्रीय कवि संगम जिला इकाई बस्तर की ओर से युवोदय अकादमी सभागार में गीता जयंती के उपलक्ष में व्याख्यानमाला एवं कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर बसंत लाल झा और  पद्मश्री धर्मपाल सैनी के अतिरिक्त जमशेदपुर के साहित्यकार हरकिशन चावला और नागपुर की कवयित्री श्रीमती रीमा दीवान चड्ढा विशेष रुप से उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संयोजन राष्ट्रीय कवि संगम के प्रांत मंत्री भरत गंगादित्य और राष्ट्रीय कवि संगम  बस्तर जिला इकाई की सचिव पूर्णिमा सरोज के माध्यम से किया गया।
कार्यक्रम दो सत्रों में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में गीता के ऊपर उद्बोधन देते हुए पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने कहा कि गीता का मुख्य संदेश कर्म में अनासक्ति है ।हमारे क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने गीता के संदेश को ग्रहण किया और फांसी के फंदे पर झूलने से पहले कह गए मैं स्वतंत्र भारत देखने के लिए जीवित नहीं रहूंगा, यह देह नहीं रहेगी परंतु जब आजादी का सूरज चमके तो मेरे देश की राख हो उसके समक्ष बिखेर देना, यह निर्भीकता ही गीता की ताकत है। व्याख्यान माला के अगले क्रम में संबोधित करते हुए जमशेदपुर से पधारे साहित्यकार हरकिशन चावला ने कहा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन को एक उत्सव बताया है और उसी का अनुसरण करते हुए हमें इस जीवन को एक उत्सव की तरह बिताना चाहिए। भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे संस्कार उत्सव के रूप में ही मनाए जाते हैं ।एक तरह से देखा जाए तो इन संस्कारों में गीता का संदेश स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अगले क्रम में गीता के ऊपर विचार प्रकट करते हुए प्रोफ़ेसर बसंत लाल झा ने कहा की जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन दिग्भ्रमित होता है ,तो श्री कृष्ण उसे झकझोरते हैं और उसके अंतःकरण की चेतना का जागरण करते हैं ।श्री कृष्ण कहते हैं हे अर्जुन तू अपने कर्म कर्तव्य का पालन कर। इस तरह अर्जुन श्री कृष्ण की बातों को स्वीकार करके कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए खड़ा हो जाता है ।गीता में वेदांत का ज्ञान पूरे निचोड़ के रूप में रखा गया है ।गीता मार्गदर्शक है अतः इसे पूरा पढ़ना चाहिए और अपने बच्चों को भी गीता का ज्ञान देना चाहिए। युवा पीढ़ी को भी गीता का ज्ञान देना चाहिए ,गीता का ज्ञान उनके कैरियर निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकता है व्याख्यानमाला सत्र का संचालन शशांक श्रीधर शेंडे ने किया।
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 दूसरे सत्र में काव्य संध्या आयोजित की गई जिसमें उपस्थित कवियों ने विभिन्न विषयों में अपना काव्य पाठ किया।
 काव्य पाठ करते हुए रामेश्वर प्रसाद चंद्रा ने  अपनी कविता पढ़ी-

' अगर राम वन नहीं जाते ,
शबरी के बेर कहां खा पाते ।
सुग्रीव को राजा कैसे बनाते ,
भक्त हनुमान से कहां मिल पाते,
 विभीषण को राजा कैसे बनाते ।।'
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 चमेली नेताम ने रचना पढ़ी -

'जीवन जल से ही मिले ,समझो जग यह बात।
 जल संरक्षण सब करो, दिन होवे या रात ।।'
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शशांक श्रीधर शेंडे ने रचना पढ़ी-

' बस्तर के मेले मड़ई,
यहां का हाट बाजार,
 नोनी का अनोखा जूड़ा ,
जूड़े में कंघी का टांगना,
 देखा पहली बार ,
मज़ा आ गया।'
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 पूर्णिमा सरोज ने  कविता पढ़ी-

' हिंदी है संस्कृति की भाषा ,
हिंदी है देश का गहना ।
जन-जन की यह भाव की भाषा ,
इसका क्या है कहना ।।'
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विमल तिवारी ने कविता सुनाई-

'धान की बालियां पक गई ,स्वर्ण किंकण सा पहने  है आभूषण, बस्तरी बाला, रुनझुन रुनझुन ,
तब प्रकृति गा उठती है गीत।' 
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ज्योति चौहान ने कविता में कहा-

'छल कपट से दूर कर मन ,धर्म को धारण करें ।
त्याग तप की ज्योत जलाएं, सदाचार वरण  करें।।' 
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गीता शुक्ला ने नारी जागरण पर कविता सुनाई -

समय बदल गया है हिम्मत मत हारो।
' उठो नारियों आगे आओ।।' 
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सतरूपा मिश्रा ने कविता सुनाई-

 'अरे  गुलमोहर,
 तुम से ही सीखा है,
 मैंने मुस्कुराना।'
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 रीमा दीवान चड्ढा ने अपनी कविता में कहा-
'अपनी भोली मुस्कुराहट ,बिंदास हंसी,
 सहज सरल भरोसे की प्रवृत्ति, पुरानी दोस्ती ,
पुराने रिश्तों की नमी में ,हम पिघल पिघल जाते हैं ,
हम छोटे शहर के लोग ।'
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सुरेश विश्वकर्मा 'चितेरा' ने कविता सुनाई-
' दरवाजे के दोनों पल्ले ,
आपस में लिपटकर रोने लगते हैं,
 जब पूरा घर बाहर होता है ।'
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हिमांशु शेखर झा ने कविता पढ़ी-

' जानता हूं, 
बह जाएंगे शब्द,
 पानी की तरह।'
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 कवि भरत गंगादित्य ने  कविता सुनाई-

' वक्त के साए में ऐसे, पल रही है जि़ंदगी।
 जाने क्यों हमको ही हमसे छल रही है जिंदगी ।।'
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जमशेदपुर के कवि हरकिशन चावला ने अपनी कविता का पाठ किया-

' जिस राम की माता कैकई ने,
 उनको अपने घर से निकाला।
 उसी राम को कभी तुलसी ने,
  हर घर हर दिल में बसा दिया ।।'
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प्रो. बसंत लाल झा ने श्री कृष्ण भगवान पर अपनी रचना सुनाई-



 हे मेरे प्रिय सखा, गुरु और स्वामी,
 मैं तुम्हारा आज का अर्जुन हूं ।
दिग्भ्रमित उसी की तरह ,
उसी तरह ढूंढता  बहाना,
युद्ध से विरत होने का ।'
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 कार्यक्रम में डॉ सुषमा झा ने 'धारदार ज़ुबान' शीर्षक से अपनी रचना पढ़ी, पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने 'मृत्यु"' शीर्षक पर अपनी रचना सुनाई और ग़ज़लकार ऋषि शर्मा ने अपनी ग़ज़लों से समा बांधा। काव्य सत्र का संचालन पूर्णिमा सरोज ने किया। काव्य पाठ के अंत में राष्ट्रीय कवि संगम बस्तर जिला इकाई की ओर से उपस्थित साहित्यकारों को श्रीमद्भागवत गीता की प्रतियां उपहार स्वरूप भेंट की गई। कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रीय कवि संगम का परिचय देते हुए राष्ट्रीय कवि संगम के प्रांत मंत्री  भरत गंगादित्य ने उपस्थित अतिथियों के प्रति आभार प्रदर्शन किया और कार्यक्रम समापन की घोषणा की।

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