• अशोक ढवले अध्यक्ष, बीजू कृष्णन महासचिव और पी कृष्णप्रसाद कोषाध्यक्ष बने रायपुर : संगठन को मजबूत बनाने, मोदी सरकार की कृषि विर...
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• अशोक ढवले अध्यक्ष, बीजू कृष्णन महासचिव और पी कृष्णप्रसाद कोषाध्यक्ष बने
रायपुर : संगठन को मजबूत बनाने, मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष तेज करने, कॉरपोरेट–साम्प्रदायिक गठजोड़ को परास्त करने और देशव्यापी संयुक्त किसान आंदोलन का विस्तार करने के आह्वान के साथ अखिल भारतीय किसान सभा का 35वां महाधिवेशन केरल की सांस्कृतिक राजधानी त्रिशूर में संपन्न हुआ। महाधिवेशन के अंतिम सत्र में पूरे देश से निर्वाचित 800 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने अशोक ढवले को किसान सभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया और 158 सदस्यीय किसान कौंसिल ने बीजू कृष्णन को महासचिव तथा पी कृष्णप्रसाद को वित्त सचिव चुना। संगठन के निवर्तमान महासचिव हन्नान मोल्ला को उपाध्यक्ष चुना गया।
यह जानकारी छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दी। उन्होंने बताया कि किसान सभा महाधिवेशन में केंद्र और राज्य सरकारों की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी संयुक्त आंदोलन को और मजबूत करने का संकल्प लिया गया। इन नीतियों के कारण पिछले तीन दशकों में चार लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है और ऋणग्रस्तता के कारण किसान समुदाय सर्वनाश के कगार पर पहुंच चुका है, क्योंकि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर फसलों के लाभकारी समर्थन मूल्य से आज भी वे वंचित हैं।
उन्होंने बताया कि किसान सभा के इस महाधिवेशन को राकेश टिकैत, अतुल अंजान और राजाराम सहित संयुक्त मोर्चा के विभिन्न किसान नेताओं ने भी संबोधित किया और देशव्यापी संयुक्त किसान आंदोलन को विकसित करने तथा दिल्ली की सीमाओं को जाम करने में किसान सभा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया, जिसके चलते तीन किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा है। सम्मेलन में सभी किसान नेताओं ने लाभकारी समर्थन मूल्य सहित जल–जंगल–जमीन के सवालों और अन्य लंबित मुद्दों पर नए सिरे से आंदोलन शुरू करने की सरकार को चेतावनी दी।
किसान सभा नेताओं ने बताया कि महाधिवेशन में किसान सभा की सदस्यता को अगले पांच सालों में देश के दस प्रतिशत किसानों तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया है। वर्तमान में किसान सभा की सदस्यता 1.37 करोड़ है, जो देश के 24 राज्यों और 428 जिलों में फैली हुई है और 52000 से अधिक प्राथमिक इकाईयों में संगठित हैं। सम्मेलन में संगठन के विस्तार के लिए और "हर गांव में किसान सभा और किसान सभा में हर किसान" के नारे पर अमल के लिए विशेष कार्य योजना बनाई गई है, ताकि खेती–किसानी में कॉरपोरेट घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन में हर गांव को शामिल किया जा सके। किसान सभा महाधिवेशन में मजदूर–किसान एकता का निर्माण करने पर बल दिया गया है, ताकि मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन को मजबूत किया जा सके।
उन्होंने बताया कि महाधिवेशन में 20 से अधिक प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देने, सभी गरीब व मंझले किसानों का कर्ज माफ करने, वनाधिकार कानून का प्रभावी क्रियान्वयन करने, खेत मजदूरों और महिला किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करने, मजदूर विरोधी श्रम संहिता वापस लेने, दूध उत्पादक और गन्ना किसानों की समस्याओं पर, खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने, फसल बीमा योजना, जलवायु परिवर्तन का देश के किसानों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से संबंधित प्रस्ताव भी शामिल हैं। महाधिवेशन ने चार आयोगों में बंटकर खेती–किसानी से संबंधित मुद्दों पर भी कृषि विशेषज्ञों की उपस्थिति में विचार–विमर्श किया। इन प्रस्तावों और आयोगों की सिफारिशों की रोशनी में आगामी दिनों में देशव्यापी किसान आंदोलन का विस्तार किया जाएगा।
इस महाधिवेशन से पूर्व देश के किसान आंदोलनों और उनकी शहादत स्थलों से मशाल यात्राएं निकाली गई थीं, जिनकी लौ से सम्मेलन स्थल की मशाल प्रज्वलित की गई। सम्मेलन के अंतिम दिन एक विशाल आमसभा का आयोजन किया गया, जिसमें दो लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। किसान सभा के नव निर्वाचित नेताओं के अलावा इस सभा को केरल की वामपंथी सरकार के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने विशेष रूप से संबोधित किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार मोदी सरकार की कृषि विरोधी और कॉरपोरेटपरस्त नीतियों के मुकाबले केरल में सहकारी खेती को प्राथमिकता दी जा रही है और कृषि के वैकल्पिक मॉडल का विकास किया जा रहा है। किसान सभा नेताओं ने अपने संबोधन में कहा कि यदि वैकल्पिक कृषि नीतियों पर आधारित देशव्यापी किसान आंदोलन को मजबूत बनाना है, तो मजदूर–किसान एकता पर आधारित जनसंघर्षों का निर्माण करना होगा। अखिल भारतीय किसान सभा के इस 35वें महाधिवेशन ने इस चुनौती को स्वीकार किया है।
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