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राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त नैना सिंह धाकड़ के पर्वतारोहण के अनसुने किस्से, बस्तर की बेटी को मुख्यमंत्री ने दी बधाई

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रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की पर्वतारोही सुश्री नैना सिंह धाकड़ को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किए जाने पर बधाई और शुभका...

रायपुर : मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की पर्वतारोही सुश्री नैना सिंह धाकड़ को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किए जाने पर बधाई और शुभकामनाएं दी है। पर्वतारोही सुश्री नैना सिंह धाकड़ को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने तेजनिंग नोर्गे राष्ट्रीय पुरस्कार के तहत लैंड एडवेंचर पुरस्कार से सम्मानित किया है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि हमारे छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है कि सुश्री नैना ने यह उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने सुश्री नैना के उज्ज्वल भविष्य की कामना की है। उल्लेखनीय है कि सुश्री नैना सिंह धाकड़ ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और चौथी ऊंची चोटी माउंट ल्होत्से में 10 दिनों के भीतर चढ़ाई कर तिरंगा फहराया था। सुश्री नैना यह उपलब्धि करने वाली भारत की पहली महिला पर्वतारोही है।



कुछ समय पहले नैना सिंह धाकड़ से हमारी मुलाकात हुई थी, ऊपर वीडियो में आप उनके जीवन की संघर्षों की कहानी सुन सकते हैं।



• ”डर के आगे ही जीत है” विश्व की सबसे ऊंची चोटी फतह करने वाली नैना को लगता था ऊंचाई से डर 
अक्सर लोग कहते हैं ”जैसा नाम वैसा काम।” ऐसे ही आज पर्वतारोही नैना सिंह धाकड़ ने हमे एक धाकड़ साक्षात्कार दिया। आज हम आपका परिचय बस्तर की शान, इस धरती की ऐसी बेटी से करवा रहें हैं। जिन्होंने काफी कम उम्र में भारत की सबसे ऊंची चोटियों तक पहुंचकर नए कीर्तिमान बनाए। इस सफर में कई बार इनकी जान भी जोखिम में पड़ी, मगर सारी परेशानियों और डर को पार करते हुए। उन्होंने अपनी एक अलग पहचान देश में स्थापित की। हमने नैना से शासन प्रशासन द्वारा मिलने वाले सहयोग के बारे में भी चर्चा की, जिसके बारे में बड़ी ही बेबाकी से उन्होंने अपनी बात रखी। 
• परिचय : नैना सिंह धाकड़ का जन्म जगदलपुर में हुआ। इनके परिवार में इनकी माता और दो भाई हैं। जब इनकी उम्र महज 3 वर्ष की थी तब इनके पिता जो पुलिस विभाग में कार्यरत थे उनकी मृत्यु हो गई थी। जगदलपुर में ही महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल और ग्रेजुएशन पीजी कॉलेज धरमपुरा से पूरी करने के बाद बिलासपुर विश्वविद्यालय से एम एस डब्ल्यू और दुर्ग विश्वविद्यालय से बी पी एड का कोर्स उन्होंने किया है। शालेय और कॉलेज की पढ़ाई के बीच ये एनएसएस और स्काउट गाइड से जुड़ीं। जूडो और कराटे से भी इनका जुड़ाव रहा है। जूडो में तीन बार नेशनल खेला है। कुश्ती और बैडमिंटन में राज्य स्तर पर खेला है। 2021 में विश्व की सबसे ऊंची चोटी 8848.6 मी. की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट फतह करने की उपलब्धि अपने नाम की। विश्व की चौथी सबसे ऊंची चोटी माउंट लाओत्से जिसकी ऊंचाई 8516 मी में चढ़ाई करके पहली महिला पर्वतारोही के रूप में अपना विश्व रिकॉर्ड बनाया। 
जगदलपुर : पर्वतारोहण में बस्तर की बेटी नैना सिंह धाकड़ लगातार नए नए कीर्तिमान स्थापित करके बस्तर और छत्तीसगढ़ का नाम विश्वपटल में अंकित कर रहीं हैं। व्यतिगत जीवन की विभिन्न पड़ावों और संघर्षों के विषय में हमने मुलाकात कर चर्चा की। उन्होंने पूरे उत्साह से जय हिंद, जय जोहार और जय छत्तीसगढ़ कहते हुए, अपने साक्षात्कार की शुरुआत की। अपने बचपन से बातों की शुरुआत करते हुए उन्होंने बताया कि "बचपन में ही पिता का साया उठ जाना बड़ी ही कठिन बात थी। उस उम्र में मेरी मां ने हमें संभाला और हमसे कहती कि आपके पापा ड्यूटी में गए हैं।” उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि ”उस समय जब पापा आते, दुलारते तब मैं सोती ऐसी आदत थी लेकिन अचानक इस घटना ने सब कुछ बदल दिया। समय बीतता रहा और मेरी स्कूलिंग और कॉलेज की पढ़ाई करते हुए हमेशा मुझे ऐसा लगता रहता कि मेरे कंधों पर बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें मुझे निभाना पड़ेगा। असल में मैं कहूं तो मेरे बचपन में मुझे खिलौने नहीं दिए गए, बल्कि बहुत सी जिम्मेदारियां दी गई।" इसके बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि "बचपन से ही घर के काम में मुझे अच्छी तरह से काबिल बनाया गया, स्कूल में 1600 विद्यार्थियों के बीच हेड गर्ल बनाया गया। जिसमे मुझे हर एक बच्चे को संभालना होता था। कॉलेज में भी ऐसी ही जिम्मेदारियां मुझे मिलीं, और वहीं मैं खेल कूद से भी जुड़ी।” उन्होंने हमारी सामाजिक दृष्टिकोण के विषय में कहा कि "सबसे पहले मुझे बहुत अच्छा लगा जब मैंने पांचवीं कक्षा में रंगमंच से जुड़ कर नाटक किया। उस प्रतियोगिता में मुझे प्रथम स्थान मिला, और एक सर्टिफिकेट दिया गया। मुझे लगता है कि बच्चे को जब किसी कार्य के लिए प्रोत्साहन मिलता है तब वह उस विधा में आगे बढ़ता है। वही मेरा शौक था कि मैं नाट्य कला के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती थी, लेकिन जब मैं घर आई तो मुझे पता चला की मेरी मां से किसी ने शिकायत की है कि आपकी बेटी तो बहुत बड़ी हो गई है, उसने मेरे चरित्र पर शिकायत की थी। मैं आपके माध्यम से यह पूछना चाहती हूं कि कक्षा पांचवी की बच्ची के चरित्र के विषय में बात करना कहां तक जायज है? इस तरह मैं कह सकती हूं कि बिन बाप की बेटी होने के कारण बचपन बड़ा संघर्षमय रहा। मेरी मां ने इतनी छोटी सी जगह से हम भाई बहनों की परवरिश करके हमें अपने मुकाम तक पहुंचाया ये बहुत बड़ी बात है। उनसे मैं हमेशा प्रेरित होती रहती हूं। खैर रंगमंच और नृत्य से गहरा जुड़ाव बना रहा। इसके लिए विभिन्न प्रतियोगिता में भाग लेने बहुत से स्टेज शोज भी किए। तब भी मेरे आस पास से मेरी मां को बहुत से उलाहनाओं को सहना पड़ा जैसे - 'बाप नहीं हैं तो अब लड़की को लोगों के सामने नचवाओंगी!' ये सारी बाते बहुत कड़वी थीं, लेकिन मेरे लिए ये बहुत कठोर समय था, क्योंकि ये सब बातें मेरे दिल और दिमाग में घर कर रहीं थीं। इन सब के चलते मैने ये सब छोड़ दिया। इसके बाद मेरा परिचय हॉकी से हुआ। मैं सुबह घर के काम निबटाने के बाद ग्राउंड जाती। अब यहां भी समस्या आई, क्योंकि हॉकी स्टिक पकड़कर आप सूट तो नही पहने रख सकते। ये फुर्ती का खेल है, इसमें तो इसके हिसाब से ही कपड़े पहनने होते हैं। जब मैं टी शर्ट और निक्कर पहनती थी, उस बात की भी शिकायत अब मेरे घर पहुंचनी शुरू हो गई। 'अब तो तुम्हारी बेटी छोटे कपड़े पहनना भी शुरू कर दी है' ये सारी बाते मुझे बहुत आहत करतीं थीं, और इसके चलते मैने हॉकी भी खेलना बंद कर दिया। लेकिन अंदर ही अंदर ये सारी बातें मुझे परिपक्व और मजबूत बना रही थीं कि मैं एक दिन माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुंच कर उन सभी को करारा जवाब दे सकूं। इसके बाद मैने अपनी पढ़ाई में पूरा ध्यान दिया, पढ़ाई के साथ साथ कुछ बच्चों को भी मैं पढ़ाने लगी और ट्यूशन से मिले पैसों से मैंने अपनी पढ़ाई और जेब खर्च चलाना शुरू किया। लेकिन स्कूल और कॉलेज के बीच में एनएसएस और स्काउट गाइड से जुड़ी रही और लालबाग मैदान में परेड में भी हिस्सा लिया। एनएसएस कैंप में सद्भावना और अलग अलग बच्चों के साथ तालमेल बिठाने के बारे में सीखा। ये मेरा पहला मौका था जब मैं पहली बार एक हफ्ते के लिए अपने घर से दूर रही। उसी कैंप में मुझे पहली बार सुनाई पड़ा कि ’डोंगरी (पहाड़) में जाना है पहाड़ तोड़ के लाना है' इसने मेरे भीतर एक अलग बदलाव लाया।"

बचपन से था ऊंचाई का डर :
नैना ने बताया कि "मैं आपको बताना चाहती हूं कि बचपन में मुझे सफर करने और ऊंचाई पर चढ़ने पर बहुत डर लगता था। मैं कभी सफर करती तो चक्कर आने की समस्या होती, और ऊंचाई पर चढ़ना तो मेरे लिए नामुमकिन बात थी। अगर मैं एक दिन माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच सकती हूं तो इस दुनिया में कुछ भी किसी भी इंसान के लिए मुश्किल नहीं है।" उन्होंने बताया "उस कैंप में पहली बार मैं पहाड़ पर चढ़ी और हमारे समूह ने वहां से पत्थर लाकर उस पंचायत के लिए एक चबूतरा बनाया। और आज भी ग्राम पंचायत की बैठकें उस चबूतरे पर होती हैं। जिस गांव में हमने एक हफ्ते का समय बिताया उस स्थान को हम कुछ देकर जा रहे हैं, ये एक बहुत खुशी का अनुभव था। उस कैंप में मुझे पहली बार पता चला की मैं शारीरिक और मानसिक रूप से पहाड़ चढ़ने के लिए कितनी तैयार हूं। सन 2010 में एनएसएस की ओर से नेशनल कैंप में शामिल होने का मौका मिला, जिसमे हम हिमाचल गए थे। इसके चलते कुछ समय बाद मुझे एक अधिकारी ने 2011 में जानकारी दी कि टाटा स्टील की ओर से आपको भूटान जाने के लिए चयनित किया गया है। आपको पूरे देश से सम्मिलित अलग अलग महिलाओं के बीच बस्तर का प्रतिनिधित्व करना है। टाटा स्टील प्लांट बस्तर में एक प्लांट खोलने वाली थी, इसके लिए उन्होंने अलग अलग कार्यक्रम किए। इस सफर में मुझे बस्तर से दिल्ली वहां से जलपाईगुड़ी सिलीगुड़ी से होते हुए भूटान तक जाना पड़ा। वो मेरी जिंदगी का पहला मौका था, जिसमे मेरा परिचय उन महिलाओं से हुआ जो पर्वतारोहण में सालों से जुड़ीं हुई हैं। उन सब में मैं सबसे छोटी थी। उन सब के मुकाबले न तो मैं मानसिक रूप से तैयार थी न ही शारीरिक रूप से, लेकिन मेरे अंदर एक अलग ही उमंग और उत्साह था। उस वर्ष हमने "लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड" में नाम दर्ज कराया था। जिसमे भारत की 12 महिलाओं ने इस कठिन पहाड़ को चढ़ कर रिकॉर्ड में बनाया था। बस्तर वापिस आने के बाद मुझे जिला प्रशासन और टाटा स्टील की ओर से पर्वतारोहण के लिए कोर्स करने का मौका मिला। एडवांस कोर्स करने के बाद मुझे 2013 में नेपाल में अन्नपूर्णा पहाड़ में पर्वतारोहण का मौका मिला। अब तो मुझे मेरी राह मिल गई थी। पहले रंगमंच, नृत्य और हॉकी उन लोगों की वजह से छोड़ने के बाद मुझे पर्वतारोहण में खुद को स्थापित करने की प्रेरणा मिली। आज वही लोग आकर कहते हैं कि मैं जानता था/जानती थी कि तुम एक दिन कुछ बड़ा करोगी। ये मेरे लिए बहुत ही मजेदार बात होती है और उनकी इन बातों से मुझे मेरा बचपन याद आ जाता है।” 

मेरे चेहरे को देखकर किसी ने नहीं सोचा की मुझे कोई अभाव रहा है : 
पर्वतारोहण में चुनौतियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि "इस सफर में कई चोटियों तक मैने चढ़ाई की, इसमें लोगों के तानों की गूंज जो मेरी मां को सुनना पड़ता था उसने मेरा पीछा कभी नहीं छोड़ा और उन्हें जवाब देने के लिए ही मैं बिना थके लगातार चलती रहती थी। अब वही लोग शादी के लिए भी कहने लग गए। लेकिन मेरी मां मेरे लिए भगवान का स्थान रखती हैं। क्योंकि हमेशा उन्होंने मेरा साथ दिया। अगर मेरे पिता भी होते तो शायद वे आज मेरे लिए उतनी ही अहमियत रखते लेकिन मेरी मां ने कभी मुझे कमज़ोर होने या पिता की कमी होने नही दी। आज मेरे चेहरे को देख कर किसी को भी ये नही लगता की मेरे जीवन में कोई भी अभाव होगा। मुझसे मिलने वाले आज कहते हैं कि आपके माता- पिता बहुत सौभाग्यशाली हैं। तो मेरे लिए माता भी वही हैं और पिता भी।" 
पर्वतारोहण में अपने सबसे खुशी के पलों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि "एक लड़की जो बस्तर ब्लॉक के एक छोटे से गांव से आकर वहां तक पहुंचती है, जबकि उसके पास कोई खास जानकारी या संसाधन नही है। ऐसे में 2021 में मैने माउंट एवरेस्ट की चोटी फतह करने का काम किया। यह विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। इस बीच कुछ अफवाहें भी फैली की वहां मेरी मृत्यु हो गई है। मेरी मां उस समय काफी परेशान हुईं थीं।"

खिलाड़ियों की जिम्मेदारी होती है परिवार के प्रति, इसपर सरकार को ध्यान देना चाहिए:

राज्य की प्रतिभाओं और शासन द्वारा उसके प्रोत्साहन दिए जाने पर उन्होंने कहा कि "बस्तर को देश दुनिया में पिछड़ा समझा जाता है। लेकिन हर एक विधा में प्रतिभाओं की यहां कोई कमी नहीं हैं। बस उन्हें एक प्रोत्साहन चाहिए। पूर्व कलेक्टर रजत बंसल जी ने मेरे पर्वतारोहण मिशन के लिए एनएमडीसी से एक पैकेज दिलवाया था। उस मिशन के लिए मेरे लिए वह महत्वपूर्ण मदद थी। ऐसा सहयोग हर खिलाड़ी को मिलना चाहिए। मेरी विधा बिल्कुल अलग है। ऐसे में जान का जोखिम होने के साथ ही मुझे अलग से खर्चे करने होते है। भारी भरकम बैग पैक, खाने पीने की चीजों के साथ यात्रा व्यय वगैरह। यह सब खर्चे मुझे खुद वहन करने होते हैं। इसके लिए शासन की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है। मैं शासन से बस यही आग्रह करूंगी कि जैसे आप विभिन्न खेलों को प्रोत्साहन दे रहें हैं, वैसे ही इन खेलों के खिलाड़ियों की भी पूछ परख कर लें तो खिलाड़ी खुशी खुशी अपने विधा में नए नए कीर्तिमान स्थापित कर, प्रदेश और देश का नाम विश्वपटल में ऊंचा करेंगे। हमारे परिवार और रिश्तेदारों ने यह समझा है की इतने पर्वतारोहण के बाद मुझे बहुत पैसा मिला होगा तो मैं उन्हें बताती हूं की ऐसा नहीं है।" उन्होंने अंत में कहा कि "मैं शासन प्रशासन और हमारे विचारशील मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी से आग्रह करती हूं कि वे इस ओर भी ध्यान दें। ताकि अपनी विधा के साथ हम अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी अच्छे से निभा सकें।"

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