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क्या सच में प्रशासन अनभिज्ञ है, इन राशन संचालकों की परेशानियों से "कौन देगा क्षतिपूर्ति!"

जगदलपुर : बस्तर में राशन संचालकों पर खाद्य विभाग द्वारा अलग-अलग मामलों में चावल, चना, शक्कर और गुड़ पर दर्शाए गए मात्रा से ज्यादा उठाने पर ...

जगदलपुर : बस्तर में राशन संचालकों पर खाद्य विभाग द्वारा अलग-अलग मामलों में चावल, चना, शक्कर और गुड़ पर दर्शाए गए मात्रा से ज्यादा उठाने पर कार्यवाहियां हुईं हैं। इसी मामले की तह में जाते हुए हमने शासकीय उचित मूल्य की दुकान ग्राम बेलर (लोहंडीगुड़ा) में देखा। इस दुकान में आज ट्रक में चावल आया था, जिसमें यहां के ठेकेदार नरसिंह शर्मा से हमने गुणवत्ताहिन बारदाने और जमीन में गिरने वाले चावल के दानों के विषय में चर्चा की उन्होंने कहा कि "जो नए बोरे आ रहे हैं वह तो ठीक है, लेकिन जो पुराने बुरे हैं, जिनका उपयोग धान खरीदी में भी किया गया, दो से तीन बार उनका उपयोग किया जा चुका है, उनमें जब हुक लगा कर उतारा या चढ़ाया जाता है, तो बोरों से चावल गिरता ही है। यहां सबसे बड़ी परेशानी बारदानों की ही है। जो पुराने बोरे हैं उसमें 30 से 40 किलोग्राम तक चावल गिर जाता है। अगर गोदामों से पहले से ही अच्छे बारदाने दिए जाएं और पुराने बरदानों को अच्छे से सिलाई करके दी जाए तो यह चावल गिरने की समस्या काफी हद तक ठीक हो जाएगी। 


वही राशन संचालक नरसू राम कश्यप ने कहा कि यहां रास्ते में जो गिरा हुआ चावल देख रहे हैं उसे ग्रामीण हितग्राही ले जाना पसंद नहीं करते। आज की स्थिति में यहां लगभग 2 क्विंटल चावल गिरा हुआ है। सरकार द्वारा अभी हमारे तौलने की मशीन में ब्लूटूथ से जोड़कर एक एक किलोग्राम का हिसाब लिया जाएगा इससे हमें सबसे बड़ी समस्या वितरण में बारदानों से गिरे हुए चावल से होगी। क्योंकि अगर मैं इस चावल को साफ करवा कर भी ग्रामीणों को वितरण करूं तो वे उसे नहीं ले जाना चाहते। इसकी क्षतिपूर्ति हम कैसे भरे? इस विषय में विभाग और सरकार को सोचना चाहिए यह मुफ्त का चावल है हम इसे साफ भी करवाएंगे तो इसकी लागत हमारे लिए बहुत ज्यादा हो जाएगी।" उन्होंने आगे कहा कि "इस मशीन को लगाने का मुख्य उद्देश्य सरकार की ओर से यह है कि राशन संचालक हितग्राहियों को राशन कम देते होंगे। जिस पर नियंत्रण करने के लिए इसे लगाया गया है। अब ईपोस में उतनी ही एंट्री दिखेगी जितना तराजू में अनाज चढ़ेगा, लेकिन जो चावल गिरा हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा!" राशन संचालक ने जानकारी दी कि "जब से हमारे वेट मशीन के साथ ई पोस मशीन को जोड़ा गया है, तब से प्रत्येक हितग्राही के राशन वितरण में लगभग 1 से डेढ़ घंटा लग जाता है। ऐसे में इन मशीनों से हमें बहुत समस्या होती है और ग्रामीण भी वितरण में देरी से व्याकुल हो जाते हैं।"
कहीं कहीं तो विक्रेताओ से बदसलूकी भी की जाती है। ऐसे में यही कहना सही होगा कि सरकारी योजना तो अच्छी है लेकिन योजना को सभी के दृष्टिकोणों से समझना भी बहुत जरुरी है।

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