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बस्तर में सिर्फ खून की होली नहीं खेली जाती

जगदलपुर (विमलेंदु शेखर झा) इस आलेख के शीर्षक से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमेशा छत्तीसगढ़ के बस्तर के बारे में लगभग सभी आलेख समाचार एवं ...

जगदलपुर (विमलेंदु शेखर झा) इस आलेख के शीर्षक से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमेशा छत्तीसगढ़ के बस्तर के बारे में लगभग सभी आलेख समाचार एवं लोगों के विचार बस्तर के नाम से सीधे तौर पर नक्सलवाद का जिक्र कर ही देते हैं। लेकिन अब बस्तर संभाग में लगभग सभी तीज ,त्योहार धूमधाम से मनाते हैं ,और लगभग सभी लोग एक दूसरे को त्योहारों की शुभकामनाएं भी देते हैं। एवं सभी लोग मिलजुलकर त्यौहार को मानते हैं।

       


 


       कुछ दशकों  पहले यह कहना गलत नहीं होगा कि बस्तर का ग्रामीण अपने गांव के अलावा बाहरी लोगों के संपर्क में रहना  था यही एक कारण था कि ग्राम्य जन बहुत से तीज त्योहारो से वंचित थे लेकिन लोग धीरे-धीरे आधुनिकता की दौड़ में शामिल होते गए और आज के वर्तमान काल में लोगों ने अपनी सहभागिता निभाते हुए तीज त्यौहार एवं अनेक संस्कृतियों का पालन करना शुरू किया। अपने पारंपरिक देवी देवताओं के अलावा अन्य पूजा अर्चनाओं में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना प्रारंभ किया अब बस्तर संभाग लगभग पूरे क्षेत्रो में पारंपरिक पूजा पाठ के अलावा दीपावली, रक्षाबंधन, नवरात्रि की पूजा एवं अनेक धर्मो को भी मानने वाले  हो गए हैं। 

    हमने शीर्षक ही में बताया कि बस्तर को सिर्फ खून की होली वाला सम्भाग न समझे बल्कि यहां के लोगों के विचारों का सम्मान करते हुए लोगों को  मुख्य धारा में  जोड़ने की शासन प्रशासन के अलावा जनमानस को भी योगदान एवं सहयोग देना चाहिए। यहां के लोग कितने उत्साह से होली के पर्व को मनाए इसे देखकर आप स्वयं अंदाजा लगा लेंगे कि अब बस्तर के लोग भी काफी विकास कर चुके हैं एवं नई टेक्नोलॉजी से परिचित भी हो चुके हैं और सुदूर अंचल के लोग भी शिक्षित होते जा रहे हैं और लोगों को भी इस दिशा में आने हेतु प्रेरित कर रहे हैं। 

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