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उत्तराखंड की चोटी पांगर्चुल्ला पर तिरंगा फहराने वाले दल में जगदलपुर के किशोर पारख भी शामिल

जगदलपुर :  उत्तराखंड के चमोली जिले की बर्फ से आच्छादित चोटी पर पहुँच 6 मई को तिरंगा फहराने वाले दल में जगदलपुर के किशोर पारख भी शामिल थे। ज्...

जगदलपुर : उत्तराखंड के चमोली जिले की बर्फ से आच्छादित चोटी पर पहुँच 6 मई को तिरंगा फहराने वाले दल में जगदलपुर के किशोर पारख भी शामिल थे। ज्ञात हो कि दस दिवसीय अभियान पर निकले दल में एक सदस्य के रूप में किशोर भी शामिल हुए।

तिरंगा फहराते किशोर पारेख


कुल 14 सदस्यों ने 15 हजार फिट से ज्यादा कि ऊंचाई पर स्थित पांगर्चुल्ला की चोटी पर चढ़ाई करने में सफलता पाई और तिरंगा फहराया। 

यात्रा के मुख्य पड़ाव:

चोटी पर चढ़ाई का अभियान 5 और 6 मई के दरम्यान रात्रि 1 बजे प्रारम्भ किया गया। बेस कैंप से लगभग 6 km की ऊँची चढ़ाई कर, बर्फ से आच्छादित कई पर्वतों को पार कर दल सुबह लगभग 8 बजे पांगर्चुल्ला पहुंचा। तापमान -7 डिग्री था जो की तेज ठंडी हवाओं के कारण  -10 डिग्री जैसा हो गया था। अभियान में युवा, बुजुर्ग व महिलाएं भी शामिल थी। सभी ने पुरे उत्साह के साथ अपने इस मुश्किल अभियान को सफल बनाया। छ.ग. जगदलपुर से किशोर के अलावा शेष सदस्य कर्नाटक मैसूर और बैंगलोर से थे। अभियान के सदस्यों को मौसम की मार भी झेलनी पड़ी ख़राब मौसम और बारिश के कारण अभियान को एक दिन टालना भी पड़ा था।

अंधेरे में दुर्गम पहाड़ पर आग बढ़ता दल


पहले दिन दुगासी से चढ़ाई प्रारम्भ की गई, गुलिंग पहुँच दल ने वहीँ रात्रि विश्राम किया। अगले दिन गुलिंग से खुल्लारा तक की चढ़ाई गई, यह मार्ग घने जंगलों के बीच से दुर्गम चढ़ाई का था। खुल्लारा में बेस कैंप बनाया गया।

14 हजार फीट की ऊंचाई पर ध्वज फहराया दल


तीसरे दिन अर्थात 4 मई को दल ने खुल्लारा से क्वारीटॉप का विशेष अभियान किया और लगभग 14 हजार फिट से ज्यादा की ऊंचाई पर पहुँच ध्वज फहराया। क्वारीटॉप से दल वापस बेस कैंप लौटा। 


पांचवें दिन मौसम ख़राब होने से ट्रेकिंग नहीं हो पाई और अंततः छठवें दिन दल ने अपना लक्ष्य हासिल किया और 15 हजार फिट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित पांगर्चुल्ला पर चढने में सफलता प्राप्त की।



पांगर्चुल्ला ट्रेक का विशेष अभियान टाइगर एडवेंचर फाउंडेशन मैसूर (इंडिया) की ओर से आयोजित था, जिसके प्रमुख हैँ डी. एस. सोलंकी, जो कि ऐसे कई अभियानों का सफल संचालन कर चुके हैँ।

किशोर पारख ने इस अभियान बेहद रोमांचक और यादगार बताया, उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति लगाव होने के कारण विगत काफ़ी समय से उनके मन में हिमालय की किसी चोटी पर ट्रेकिंग करने की इच्छा थी जो अब पूरी हुई। उन्होंने कहा कि "पर्वतारोही नैना धाकड़ और मेरे मित्र डी एस सोलंकी दोनों ने मुझे प्रभावित किया हैं।"


यदि हौसला हो तो उम्र बाधा नहीं हो सकती, जज्बा हो तो पहाड़ भी लांघा जा सकता हैं। उम्र के एक पड़ाव के बाद जब लोग घर परिवार में व्यस्त हो जाते हैँ या बीमारी से घिर जाते हैँ, उस उम्र में भी स्वास्थ्य शरीर हो तो माइनस डिग्री में भी चढ़ाई हो सकती हैं, मैंने वही प्रयास कर सफलता पाई हैं, ऐसा किशोर ने बताया।

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