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मोहम्मद अज़ीज़: संगीत के आठवें सुर के अनछुए सितारे

वेदांत झा ✍️ :  साल 1990 में, डेविड धवन ने 1960 के दशक की बंगाली फिल्म "जोग वियोग" का रीमेक बनाकर बॉलीवुड में हलचल मचा दी। फिल्म क...

वेदांत झा ✍️ : साल 1990 में, डेविड धवन ने 1960 के दशक की बंगाली फिल्म "जोग वियोग" का रीमेक बनाकर बॉलीवुड में हलचल मचा दी। फिल्म का नाम "स्वर्ग" था और इसके एक गीत "ए मेरे दोस्त लौट कर आजा बिन तेरे जिंदगी अधूरी हैं" में मोहम्मद अज़ीज़ ने अपनी आवाज का जादू बिखेरा। इस गीत में संगीत के सात सुरों के साथ एक नया, अनछुआ सुर सुनने को मिला, जिसे आठवां सुर कहा जा सकता है। मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज ने इस गीत को अमर बना दिया।



मोहम्मद अज़ीज़ का सफर

मोहम्मद अज़ीज़ का संगीत सफर उड़िया फिल्मों से शुरू हुआ। बिना किसी औपचारिक संगीत शिक्षा के, उनकी आवाज में कुछ खास था जो ऊपर वाले का आशीर्वाद माना जाता है। 1984 में, उन्हें बॉलीवुड में पहली बार "अम्बर" फिल्म में गाने का मौका मिला। हालांकि यह गाना और फिल्म दोनों गुमनाम रहे, लेकिन उनका सफर यहीं नहीं रुका।


अनु मलिक के साथ नया मोड़

1985 में, मनमोहन देसाई एक हाई बजट फिल्म बना रहे थे और अनु मलिक को संगीतकार के रूप में साइन किया गया था। अनु मलिक को रास्ते में एक गाने की बहुत ही यूनिक आवाज सुनाई दी और पता लगाने पर वह आवाज मोहम्मद अज़ीज़ की निकली। अनु मलिक ने उन्हें "मर्द" फिल्म में गाने का मौका दिया, जिसमें अमिताभ बच्चन पर "मर्द टांगे वाला" गाना फिल्माया गया। इस गाने ने धूम मचा दी और मोहम्मद अज़ीज़ रातों-रात स्टार बन गए।



आवाज की बुलंदियों का सफर

मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज समाज के हर वर्ग तक पहुंच चुकी थी। उन्होंने अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ, सनी देओल जैसे सितारों के लिए दर्जनों सुपरहिट गाने गाए। 90 के दशक में, "आपके आ जाने से" जैसे हिट गानों ने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया। कुमार सानू और उदित नारायण के दौर में भी, मोहम्मद अज़ीज़ का करियर चमकता रहा।


विवाद और करियर का पतन

मोहम्मद अज़ीज़ का करियर एक इंटरव्यू के बाद अचानक ढलान पर आ गया। एक पत्रकार ने सूफी गायकों को लेकर उनसे नुसरत फतेह अली खान पर सवाल किया। मोहम्मद अज़ीज़ ने कड़े शब्दों में नुसरत फतेह अली खान की आलोचना की, जिसे सूफी संगीत प्रेमियों ने पसंद नहीं किया। उन्होंने कहा कि सूफी गाना बहुत शालीनता और तन्मयता के साथ गाया जाता है, लेकिन नुसरत चिल्ला-चिल्लाकर गाते हैं। इस बयान के बाद बॉलीवुड में उनका करियर धीरे-धीरे खत्म हो गया।


बॉलीवुड की कठोर वास्तविकता

बॉलीवुड इंडस्ट्री शुरू से ही ऐसी रही है कि कब किस बयान पर वह एक सितारे को फर्श पर पहुंचा दे, बताना मुश्किल है। मोहम्मद अज़ीज़ इस बात के एकमात्र उदाहरण नहीं हैं, अभिजीत भी इसी राह पर चले। मोहम्मद रफी की गायकी का उन पर गहरा प्रभाव था और संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने उनसे कई गाने गवाए।



अंतिम विदाई

80-90 के दशक में एक से बढ़कर एक हिट गानों को आवाज देने वाले मोहम्मद अज़ीज़ ने 64 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। 26 नवंबर 2018 को कोलकाता में एक कार्यक्रम के बाद लौटते समय, मुंबई एयरपोर्ट पर उनकी तबीयत खराब हो गई और उन्हें नानावटी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।


यादें और विरासत


मोहम्मद अज़ीज़ भले ही गुमनामी के बीच इस दुनिया को छोड़ गए हों, लेकिन उनके गाए गीत हमेशा-हमेशा के लिए लोगों के बीच अमर रहेंगे। उनके गाने आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजते हैं। बॉलीवुड की चमक-धमक की दुनिया के पीछे की असलियत अक्सर लोगों को हैरत में डाल देती है। बाहर से जो इंडस्ट्री बेहद खूबसूरत नजर आती है, वह असल में अंदर से उतनी ही फीकी और कठोर है। मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज की मिठास और उनकी धुनें आज भी हमें याद दिलाती हैं कि सच्ची प्रतिभा कभी मरती नहीं, वह अमर हो जाती है।

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