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एग्जिट पोल: लोकतंत्र की धड़कन या महज़ एक पूर्वानुमान?

वेदांत झा ✍️ :  एग्जिट पोल भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। मतदान के दिन न्यूज चैनल और एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के...

वेदांत झा ✍️ : एग्जिट पोल भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। मतदान के दिन न्यूज चैनल और एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के प्रतिनिधि मतदान केंद्रों पर मौजूद होते हैं। मतदान करने के बाद मतदाताओं से चुनाव से जुड़े कुछ सवाल पूछे जाते हैं। उनके जवाब के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है, जिससे पता चलता है कि मतदाताओं का रूझान चुनाव में किधर है। खास बात यह है कि एग्जिट पोल सर्वे में सिर्फ मतदाताओं को शामिल किया जाता है।



एग्जिट पोल के आंकड़े: सटीकता और सीमाएँ

2024 


एग्जिट पोल के आंकड़े अंतिम परिणामों का सटीक प्रतिबिंब नहीं होते। इनका आधार सीमित संख्या में मतदाताओं से प्राप्त जानकारी होती है, जो पूरे देश के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती। इसलिए, एग्जिट पोल कभी-कभी सही साबित होते हैं, तो कभी-कभी वास्तविक परिणामों से काफी दूर होते हैं। उदाहरण के लिए, 2019 के लोकसभा चुनाव में अधिकांश एग्जिट पोल ने सही भविष्यवाणी की थी, लेकिन यह हर बार संभव नहीं होता।

2019 के लोकसभा चुनाव पर exit poll की भविष्यवाणी।



कानूनी प्रावधान और प्रतिबंध


भारत में एग्जिट पोल जारी करने पर सख्त नियम हैं। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद कोई भी एग्जिट पोल या सर्वे जारी नहीं किया जा सकता है। अंतिम चरण के मतदान के बाद शाम को वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल जारी किया जा सकता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 126 ए के तहत अंतिम चरण की वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्जिट पोल जारी करने पर रोक है। उल्लंघन करने पर दो साल कारावास, जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है।


2019 के लोकसभा चुनाव: एग्जिट पोल और वास्तविक परिणाम


2019 के लोकसभा चुनाव में एग्जिट पोल ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने का अनुमान जताया था, जो सही साबित हुआ। भाजपा ने 303 सीटें जीतकर इतिहास रचा। कांग्रेस को महज 52 सीटों पर संतोष करना पड़ा। हालांकि, यह भी सच है कि हर एग्जिट पोल सही नहीं होता। कुछ एग्जिट पोल ने विपक्षी दलों को ज्यादा सीटें दी थीं, जो कि वास्तविक परिणामों से मेल नहीं खाईं।


एग्जिट पोल पर चुनाव आयोग की गाइडलाइंस

भारत निर्वाचन आयोग ने पहली बार 1998 में एग्जिट पोल की गाइडलाइंस जारी की थी। 2010 में छह राष्ट्रीय और 18 क्षेत्रीय दलों के समर्थन के बाद धारा 126 ए के तहत मतदान के दौरान सिर्फ एग्जिट पोल जारी करने पर रोक लगाई गई थी। चुनाव आयोग का मानना था कि ओपिनियन और एग्जिट पोल दोनों पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन फिलहाल केवल एग्जिट पोल पर ही रोक है। एग्जिट पोल जारी करते वक्त सर्वे एजेंसी का नाम, कितने मतदाताओं से और क्या सवाल पूछे गए, यह बताने का भी निर्देश है।


निष्कर्ष: एग्जिट पोल का सही मूल्यांकन

एग्जिट पोल मतदाताओं के मूड का एक झलक प्रदान करते हैं, लेकिन ये अंतिम सत्य नहीं होते। लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि आखिरी फैसला मतपेटी से निकलता है, और वही सबसे महत्वपूर्ण होता है। एग्जिट पोल को समझदारी से देखने और वास्तविक परिणामों का इंतजार करने में ही समझदारी है। इसलिए, हमें एग्जिट पोल को सिर्फ एक अनुमान के रूप में देखना चाहिए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतिम परिणाम का सम्मान करना चाहिए।

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