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उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का राज्य को अधिकार

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्य सरकारों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों (एसस...

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्य सरकारों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों (एससी) का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। यह निर्णय प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने दिया। इस फैसले ने 2004 के ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता।



फैसले के मुख्य बिंदु :

जस्टिस बीआर गवई ने इस फैसले के लिए 281 पेज की रिपोर्ट तैयार की, जिस पर जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने सहमति जताई। जस्टिस गवई ने अपने निर्णय में 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा पर भी विचार किया, जो कि आरक्षण नीति में अत्यधिक चर्चा का विषय रहा है। 


संविधान पीठ की सुनवाई :

सीजेआई चंद्रचूड़ समेत संविधान पीठ ने इस मामले पर तीन दिनों तक विस्तृत सुनवाई की। पीठ ने 23 याचिकाओं पर विचार किया, जिनमें मुख्य याचिका पंजाब सरकार की थी। यह याचिका 2010 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देती थी। 


राज्यों के लिए नए अवसर :

इस फैसले के बाद राज्य सरकारें एससी श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े समूहों की पहचान कर सकती हैं और कोटे के भीतर उप-वर्गीकरण कर सकती हैं। इसका उद्देश्य आरक्षण का लाभ सही मायनों में उन समूहों तक पहुंचाना है जो अब तक इससे वंचित रहे हैं। 


विभिन्न विचार :

इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों में एससी/एसटी के लिए 'क्रीमी लेयर' लागू करने को लेकर भिन्न मत थे। हालांकि, अंतिम निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया कि उप-वर्गीकरण से आरक्षण नीति अधिक न्यायसंगत और प्रभावी हो सकती है। 


यह फैसला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो अनुसूचित जातियों के भीतर समानता सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। राज्य सरकारें अब इस दिशा में कदम उठाकर सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं। 

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