रायपुर : एशिया के सबसे बड़े मानव निर्मित जंगल सफारी जू में स्थित रेस्क्यू सेंटर ने राज्य के इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए चार मॉनिट...
रायपुर : एशिया के सबसे बड़े मानव निर्मित जंगल सफारी जू में स्थित रेस्क्यू सेंटर ने राज्य के इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए चार मॉनिटर लिजर्ड को उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ने का निर्णय लिया है। यह कदम जंगल सफारी के डायरेक्टर धमशील गणवीर के निर्देशन में उठाया गया है। यह पहली बार है जब तस्करों से जब्त किए गए वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक वातावरण में लौटने का अवसर दिया जा रहा है।
जंगल सफारी में घायल और लावारिश हालत में मिले वन्यजीवों को रेस्क्यू कर उनकी देखभाल की जाती है। नियमों के अनुसार, स्वस्थ होने पर इन वन्यजीवों को 30 दिनों के भीतर छोड़ना अनिवार्य है, लेकिन अब तक ऐसा अक्सर नहीं होता था, जिससे वन्यजीवों को बंधक जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता था। इस पहल के माध्यम से वन्यजीवों को उनकी प्राकृतिक स्वतंत्रता वापस देने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है।
वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी के लगातार प्रयासों और वन अधिकारियों को लिखे गए पत्रों के परिणामस्वरूप यह फैसला लिया गया है। उन्होंने मॉनिटर लिजर्ड के मामले को गंभीरता से लेते हुए जंगल सफारी के डायरेक्टर को पत्र लिखा था। इस पर कार्रवाई करते हुए 24 जुलाई को आदेश जारी किया गया। वन विभाग की टीम ने 30 जून को इन मॉनिटर लिजर्ड को जब्त किया था।
• रेस्क्यू सेंटर में बंधक हैं दो सौ से अधिक वन्यजीव :
वर्तमान में जंगल सफारी में लगभग आठ सौ वन्यजीव निवास कर रहे हैं, जिनमें से 25% वन्यजीव रेस्क्यू या जब्ती कर लाए गए हैं। इनमें तेंदुआ, भालू, विभिन्न प्रजातियों के पक्षी, और बंदर शामिल हैं। इनमें से दो सौ से अधिक वन्यजीव पूरी तरह से स्वस्थ हैं और उन्हें जंगल में छोड़ा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
• वन्यजीवों का अवसाद और उनके व्यवहार :
विशेषज्ञों के अनुसार, वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास में स्वतंत्र विचरण करते हैं। जब इन्हें रेस्क्यू कर लाया जाता है, तो वे अवसाद में आ सकते हैं और अपने प्राकृतिक आवास में लौटना चाहते हैं। इस प्रयास में, वे बंधन से मुक्ति पाने के लिए पिंजरे को तोड़ने की कोशिश करते हैं, जिससे वे खुद को चोट पहुंचा सकते हैं।
• वन मुख्यालय के आदेश :
वन मुख्यालय ने मौखिक आदेश जारी करते हुए कहा है कि रेस्क्यू किए गए वन्यजीवों को उनके स्वास्थ्य ठीक होने पर एक सप्ताह के भीतर जंगल में छोड़ा जाए। बीमार या घायल वन्यजीवों का उपचार कर, उन्हें ठीक होने के 30 दिन के भीतर उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ा जाए।
यह पहल वन्यजीव संरक्षण और उनके अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल इन प्राणियों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, बल्कि उनकी भलाई के लिए भी आवश्यक है। इससे वन्यजीवों को अपने प्राकृतिक परिवेश में लौटने का अवसर मिलेगा, जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार होगा।
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