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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुरू की उपहारों की ऐतिहासिक नीलामी

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नई दिल्ली:  राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को एक नई पहल के तहत उन उपहारों की नीलामी शुरू की है, जो उन्हें और पूर्व राष्ट्रपतियों को विभ...

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को एक नई पहल के तहत उन उपहारों की नीलामी शुरू की है, जो उन्हें और पूर्व राष्ट्रपतियों को विभिन्न अवसरों पर प्राप्त हुए हैं। इस नीलामी की खास बात यह है कि इसमें शामिल वस्तुएं भारतीय इतिहास और संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं, जिनमें से कई दुर्लभ और अनूठी हैं।  



इस नीलामी का आयोजन (https://upahaar.rashtrapatibhavan.gov.in/) के माध्यम से किया जा रहा है, जहां लोग ऑनलाइन बोली लगाकर इन ऐतिहासिक उपहारों के स्वामी बन सकते हैं। 250 से अधिक उपहारों में से कुछ खास उपहारों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सीप शिल्प पेंटिंग और भगवान बुद्ध की प्रतिमा शामिल हैं।  


नेताजी की पेंटिंग बनी मुख्य आकर्षण  :

इस नीलामी का मुख्य आकर्षण नेताजी सुभाष चंद्र बोस की दुर्लभ शैल शिल्प पेंटिंग है, जिसकी आधार कीमत 4,02,500 रुपये रखी गई है। इस पेंटिंग में नेताजी को उनकी प्रतिष्ठित सैन्य वर्दी में, दृढ़ता और साहस के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है। पेंटिंग का कुल वजन लगभग 14.15 किलोग्राम है, और यह पेंटिंग सीप के नाजुक टुकड़ों से तैयार की गई है, जो इसे एक विशिष्ट और बेमिसाल कलाकृति बनाते हैं।  


इस पेंटिंग का महत्व केवल इसकी कलात्मकता में ही नहीं है, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साहस और बलिदान की भी याद दिलाती है।  


ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर की नीलामी  :

भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी इस नीलामी में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ये उपहार ना केवल कला और शिल्प कौशल के अनूठे उदाहरण हैं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा भी हैं।  


इस नीलामी से प्राप्त धनराशि का उपयोग समाज सेवा और राष्ट्रपति भवन की कल्याणकारी योजनाओं में किया जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस पहल के माध्यम से ऐतिहासिक धरोहरों को आम जनता के करीब लाने का प्रयास किया है, जिससे देश के नागरिक इन अमूल्य धरोहरों का हिस्सा बन सकें।  


जो लोग इन उपहारों को अपने घर का हिस्सा बनाना चाहते हैं, वे वेबसाइट पर जाकर बोली प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। यह नीलामी देश के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।  

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