रायपुर : राज्य में चल रहे विवादित युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया को लेकर शिक्षक संगठनों द्वारा किए गए कड़े विरोध के बाद, अंततः राज्य शासन ने इस प...
रायपुर : राज्य में चल रहे विवादित युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया को लेकर शिक्षक संगठनों द्वारा किए गए कड़े विरोध के बाद, अंततः राज्य शासन ने इस प्रक्रिया को स्थगित करने का निर्णय लिया है। इस फैसले से शहरों के स्कूलों में अतिशेष के रूप में तैनात शिक्षकों को बड़ी राहत मिली है।
शिक्षा विभाग द्वारा प्रस्तावित युक्तियुक्तकरण में कई विसंगतियों के चलते प्रदेशभर के शिक्षक संगठनों ने मोर्चा खोल दिया था। इसके तहत संघर्ष मोर्चा ने 9 सितंबर और फेडरेशन और संयुक्त शिक्षक महासंघ ने 16 सितंबर को प्रदेशभर के स्कूलों को बंद रखने की घोषणा की थी। इस विरोध के बाद, शिक्षा सचिव ने बुधवार को शिक्षक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। हालांकि, इस बैठक में शिक्षक संगठनों द्वारा उठाए गए मुद्दों जैसे पदों में कटौती, विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया।
सूत्रों के अनुसार, बुधवार रात में शिक्षा सचिव और विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मुख्यमंत्री निवास पहुंचे, जहां इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई। इसके बाद, आज देर शाम राज्य शासन ने युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया को स्थगित करने का फैसला लिया। हालांकि, इस संबंध में अभी तक कोई लिखित आदेश जारी नहीं हुआ है, लेकिन संबंधित अधिकारियों को मौखिक रूप से निर्देश दे दिया गया है।
छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष एवं संघर्ष मोर्चा के संयोजक संजय शर्मा ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि शिक्षक संगठन, शिक्षा विभाग के साथ मिलकर व्यवस्था बनाने में सहयोग करेंगे। छत्तीसगढ़ संयुक्त शिक्षक महासंघ के प्रदेश संयोजक राजनारायण द्विवेदी ने भी इस निर्णय को सही दिशा में उठाया गया कदम बताया और सरकार से मांग की कि पहले हर संवर्ग के शिक्षकों का प्रमोशन किया जाए, जिससे कई समस्याओं का समाधान हो सके।
शिक्षक संगठनों के विरोध और आगामी नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया है। सभी शिक्षक संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे अपनी एकता की जीत बताया है।
• मुख्य बिंदु :
- रिक्त पदों को भरने के लिए पहले प्रमोशन किया जाए।
- 2008 के सेटअप में किसी प्रकार का बदलाव न किया जाए।
- स्कूलों में प्रधान पाठक को अलग रखा जाए।
- युक्तियुक्तकरण से पहले दावा-आपत्ति का मौका दिया जाए।
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि शिक्षक संगठनों की एकजुटता ने शासन को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। अब देखना यह है कि आगे की प्रक्रिया कैसे संचालित होती है।
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