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हसदेव जंगल में पेड़ों की कटाई और आदिवासी संघर्ष: भाजपा पर कांग्रेस का तीखा हमला

सुकमा : सुकमा के जनपद पंचायत अध्यक्ष हरीश कवासी ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्य में हसदेव अरण्य जंगल की कटाई भाजपा के...

सुकमा : सुकमा के जनपद पंचायत अध्यक्ष हरीश कवासी ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्य में हसदेव अरण्य जंगल की कटाई भाजपा के संरक्षण में तेज़ी से जारी है। कवासी का कहना है कि हसदेव जंगल में 273,757 पेड़ों की कटाई की योजना बनाई गई है ताकि अडानी समूह हर साल 200 लाख टन कोयला निकाल सके और इसे राजस्थान सरकार को आपूर्ति कर सके।

कांग्रेस नेता ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में भाजपा सरकार पर पर्यावरण और आदिवासी समुदाय के साथ धोखा करने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि कांग्रेस शासनकाल के दौरान हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन की सभी अनुमतियों को रद्द कर दिया गया था, जिससे इस क्षेत्र की जैव विविधता और पर्यावरण को बचाया जा सके। केंद्र सरकार से भी इस खनन को रोकने की अपील की गई थी, लेकिन अब भाजपा सरकार बनने के बाद यह काम फिर से शुरू हो गया है।



हरीश कवासी ने कहा कि जब स्थानीय ग्रामीणों ने पेड़ों की कटाई का विरोध किया, तो प्रशासन ने उनके खिलाफ हिंसा का सहारा लिया। सरगुजा जिले में पुलिस और आदिवासियों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें कई मासूम ग्रामीण घायल हो गए। इस मुद्दे पर कवासी ने राज्य के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद, राज्य की पुलिस आदिवासी समुदाय पर अत्याचार कर रही है और भाजपा सरकार इसके लिए जिम्मेदार है।


कवासी ने भाजपा पर तीखे शब्दों में हमला करते हुए कहा, "एक तरफ यह सरकार 'एक पेड़ मां के नाम' जैसे अभियानों का नाटक कर रही है, और दूसरी तरफ हसदेव के जंगलों को कटवा कर आदिवासियों का खून बहा रही है।" उन्होंने भाजपा पर 'कथनी और करनी' में अंतर होने का आरोप लगाया, यह याद दिलाते हुए कि जब भाजपा विपक्ष में थी, तब उसने हसदेव अरण्य क्षेत्र में जंगलों की कटाई का विरोध किया था, लेकिन अब सत्ता में आते ही वही कटाई जारी है।


कवासी ने व्यंग्य करते हुए कहा कि भाजपा नेताओं को हसदेव के पेड़ों को अपने माता-पिता के नाम पर समर्पित कर उनकी रक्षा करनी चाहिए, बजाय इसके कि आदिवासियों पर लाठियां बरसाई जाएं और उनके जंगलों को नष्ट किया जाए।



इस मुद्दे पर भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन हसदेव अरण्य में चल रही यह स्थिति पर्यावरण और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के सवाल पर बड़े राजनीतिक संघर्ष का रूप ले सकती है।


क्या छत्तीसगढ़ के जंगल और आदिवासी ऐसे ही विकास की कीमत चुकाएंगे? यह सवाल अब राज्य और केंद्र की राजनीति में एक प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है।


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