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भांसी हायर सेकेंडरी स्कूल में औपचारिक निरीक्षण के दौरान शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल

दंतेवाड़ा (कृष्णा मंडल) : जिले के भांसी हायर सेकेंडरी स्कूल में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) एस. के. अमबस्ता के औपचारिक निरीक्षण के दौरान बच्...

दंतेवाड़ा (कृष्णा मंडल) : जिले के भांसी हायर सेकेंडरी स्कूल में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) एस. के. अमबस्ता के औपचारिक निरीक्षण के दौरान बच्चों की शिक्षा स्तर पर गंभीर सवाल खड़े हुए। निरीक्षण के दौरान डीईओ ने 9वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों से गणित और विज्ञान से जुड़े सवाल पूछे, लेकिन छात्रों के असमर्थता से उत्तर देने के कारण स्कूल की शैक्षणिक गुणवत्ता पर गंभीर चिंताएं उभरीं।



जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा 9वीं कक्षा के छात्रों से गणित के दो सवाल पूछे गए, जिनका उत्तर छात्र नहीं दे सके। इसके अलावा, 12वीं कक्षा के छात्रों से विज्ञान के सवाल पूछे गए, जिनका जवाब देने में भी छात्र विफल रहे। यह स्थिति देखकर डीईओ ने तत्काल शिक्षकों की बैठक बुलाई और उनकी पढ़ाई की पद्धति पर सवाल उठाए।


प्रभारी प्राचार्य निर्मला तुरखेड़े ने बच्चों के कमजोर प्रदर्शन का कारण उनके ग्रामीण पृष्ठभूमि को बताया। वहीं, छात्रों ने खुलासा किया कि शिक्षक अक्सर छुट्टियों पर रहते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। छात्रों का कहना है कि पढ़ाई में लगातार व्यवधान उनके प्रदर्शन को कमजोर बना रहा है।


शिक्षकों की लापरवाही पर सवाल :

निरीक्षण से यह स्पष्ट हुआ कि विद्यालय में गणित और विज्ञान जैसे विषयों के लिए शिक्षक नियुक्त होने के बावजूद छात्रों का प्रदर्शन अत्यंत कमजोर है। आत्मानंद स्कूल के मान्यता प्राप्त इस विद्यालय में शासन की योजनाओं के बावजूद शिक्षकों की लापरवाही के कारण शिक्षा का स्तर गिर रहा है।


भांसी हाई सेकेंडरी स्कूल एक परीक्षा केंद्र भी है, और यहां के छात्रों की यह स्थिति शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। डीईओ के दौरे में सहायक खंड शिक्षा अधिकारी हरीश सिन्हा और संकुल समन्वयक रमेश साहू भी मौजूद थे।


• आगे की कार्रवाई पर नजर :

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिला शिक्षा अधिकारी और शिक्षा विभाग इस स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाते हैं। विद्यालय में लापरवाह शिक्षकों पर उचित कार्रवाई की मांग जोर पकड़ रही है, जिससे छात्रों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।


शिक्षा का गिरता स्तर केवल छात्रों की नहीं, बल्कि समूची शिक्षा प्रणाली की जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।


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